पार्टियों के चंदा लेने का मसला नोटबंदी के दौरान खासा उछला था। समय समय पर चंदे के स्रोत को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। नोटबंदी के दौरान बसपा के खाते में मिली 104 करोड़ रुपये की रकम पार्टी की बताए जाने पर मामला भी खासा चर्चा में रहा था। हाल में दिल्ली के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा के अरविंद केजरीवाल पर हवाला के जरिए पार्टी में चंदा वसूलने तथा चुनाव आयोग को गुमराह करने का आरोप लगाया था जिसके चलते विदेशों से मिले चंदे के स्रोत को लेकर गृह मंत्रालय हरकत में आ गया है और पार्टियों को चंदे का स्रोत बताने के लिए 15 दिन का समय दिया है। मंत्रालय ने कहा है कि पार्टियों को दिए निर्देशों में कहा है कि विदेशी सहायता के रूप में निजी कंपनियों व संगठनों से मिली राशि का ब्यौरा देना होगा।
क्या कहता है कानून
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 बी के मुताबिक, देश में कोई भी राजनैतिक पार्टी सबसे चंदा ले सकती है। यहां तक की विदेशी नागरिकों से भी चंदा लिया जा सकता है। केवल सरकारी कंपनी या फिर विदेशी कंपनी से चंदा नहीं लिया जा सकता है। अगर विदेशी कंपनी भारत में मौजूद हो तब भी चंदा नहीं लिया जा सकता। विदेशी मुद्रा अधिनियम की धारा 3 और 4 में इस बारे में साफतौर पर कहा गया है कि भारतीय राजनैतिक पार्टियां विदेशी कंपनियों तथा भारत में मौजूद ऐसी कंपिनयों से चंदा नहीं ले सकती हैं जिनका संचालन विदेशी कंपनियां कर रही हैं।
जांच कर सकता है आयकर विभाग
आयकर कानून की धारा 13 ए के मुताबिक, राजनैतिक पार्टियों को आयकर से छूट मिली हुई है लेकिन उन्हें भी अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना होता है। यानी हिसाब किताब पार्टियों को भी रखना होता है। बीस हजार रुपये से कम के चंदे के बारे में चुनाव आयोग को बताना जरूरी नहीं है लेकिन रिटर्न में बताना जरूरी है। बीस हजार रुपये से कम के चंदे के बारे में स्रोत की जानकारी देना जरूरी नहीं होता जिसके चलते इसका बेजा इस्तेमाल हो सकता है। बावजूद इसके आयकर विभाग पार्टियों के चंदे की जांच कर सकता है। इसी के चलते कांग्रेस व आप को आयकर विभाग से नोटिस मिल चुके हैं लेकिन कभी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।