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समलैंगिकता जेनेटिक डिसऑर्डर, इससे फैलेगा एचआईवी: सुब्रमण्यम स्वामी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में एलजीबीटी समुदाय को बड़ी राहत देते हुए होम सेक्सुआलिटी को...
समलैंगिकता जेनेटिक डिसऑर्डर, इससे फैलेगा एचआईवी: सुब्रमण्यम स्वामी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में एलजीबीटी समुदाय को बड़ी राहत देते हुए होम सेक्सुआलिटी को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने इसे एचआईवी और जेनेटिक डिसऑर्डर से जोड़ते हुए फैसले पर आपत्ति जाहिर की।

'बदला जा सकता है फैसला'

एएनआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर स्वामी ने कहा कि यह अंतिम फैसला नहीं है और इसे बदला भी जा सकता है। स्वामी के मुताबिक, इस फैसले को सात जजों की बेंच बदल भी सकती है। स्वामी ने कहा, 'यह अमेरिकन खेल है। जल्द ही ऐसे बार होंगे जहां होमोसेक्सुअल जा सकते हैं। इससे एचआईवी फैलेगा।'

'होमोसेक्सुअलिटी जेनेटिक डिसऑर्डर'

स्वामी ने कहा, 'बिल्कुल, किसी के निजी जीवन में क्या होता है यह किसी की चिंता का विषय नहीं है और न ही उन्हें सजा मिलनी चाहिए। यह (होमोसेक्सुअलिटी) असल में एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जैसे किसी की छह उंगलियां होती हैं। इसे सही करने के लिए मेडिकल रिसर्च होनी चाहिए।'

हम समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते लेकिन समर्थन भी नही: आरएसएस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी इस मुद्दे पर अपना नजरिया पेश किया है। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जारी बयान में कहा है- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तरह हम भी इस को अपराध नहीं मानते। समलैंगिक विवाह और संबंध प्रकृति से सुसंगत एवं नैसर्गिक नहीं है इसलिए हम इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं करते। परंपरा से भारत का समाज भी इस प्रकार के संबंधों को मान्यता नहीं देता। मनुष्य सामान्यतः अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय को सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही संभालने की आवश्यकता है।

अब तक धारा 377 में क्या था?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था। इसमें 10 साल या फिर जिंदगी भर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती यानी अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती। इतना ही नहीं, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था।

समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है। इसी समुदायों के लोग काफी लंबे समय से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत इस धारा में बदलाव कराने और अपना हक पाने के लिए सालों से लड़ाई लड़ रहे थे। 

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को बताया अवैध

 सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को मान्यता दे दी है। मतलब दो वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पहचान बरकरार रखना लाइफ के पिरामिड के लिए जरूरी है। खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही देश में 158 साल पुराना ब्रिटिश कानून अब खत्म हो गया।



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