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शुरू में तो जिंदा बचने की उम्मीद छोड़ दी थी: श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया

उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों ने शुरूआत में तो जिंदा बचने की सारी उम्मीदें छोड़ दी...
शुरू में तो जिंदा बचने की उम्मीद छोड़ दी थी: श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया

उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों ने शुरूआत में तो जिंदा बचने की सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। यह दावा किया है मंगलवार को सुरंग से सुरक्षित बाहर निकाले गए श्रमिक अनिल बेदिया ने।

बेदिया ने बताया कि किस तरह उन्होंने सुरंग में शुरुआती दिन मुरमुरे खाकर और पत्थरों से रिस रहे पानी को चाटकर जीवित रहने की कोशिश की। झारखंड निवासी 22 वर्षीय बेदिया ने बुधवार सुबह उत्तराखंड से फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘तेज चीखें हवा में गूंज उठीं। हम सबने सोचा कि हम सुरंग में दब जाएंगे और हम शुरुआत के कुछ दिन में जिंदा बचने की उम्मीद छोड़ चुके थे।’’

बेदिया उत्तराखंड के एक अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह भयावह अग्निपरीक्षा की तरह था। हमने शुरुआत के कुछ दिन तक प्यास बुझाने के लिए पत्थरों से रिस रहा पानी चाटा और मुरी पर जिंदा रहे।’’

रांची के पास स्थित खीराबेडा गांव के रहने वाले बेदिया के साथ 12 और लोग आजीविका के लिए एक नवंबर को उत्तरकाशी गए थे। सौभाग्य से इनमें से केवल तीन लोग सुरंग में थे। सुरंग में फंसे 41 मजदूरों में से 15 झारखंड के विभिन्न जिलों के थे।

बेदिया ने बताया, ‘‘हमारे जिंदा रहने की उम्मीद पहली बार तब जगी जब अधिकारियों ने कुछ समय बाद हमसे संपर्क साधा।’’

खीराबेडा के ही 55 वर्षीय दिव्यांग श्रवण बेदिया का इकलौता बेटा राजेंद्र भी सुरंग में फंस गया था। उन्हें मंगलवार शाम अपने बेटे के सुरंग से निकलने की खुशी मनाते हुए देखा गया। राजेंद्र और अनिल के अलावा सुखराम भी 17 दिन तक सुरंग में फंसा रहा था।

सुखराम की दिव्यांग मां पार्वती बेटे के सुरंग में फंसने की खबर मिलने के बाद से बदहवास थीं लेकिन उसके सुरक्षित निकलने की जानकारी मिलकर बहुत खुश हुईं।

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