दहेज उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में बदलाव कर पति और उसके परिवार को मिला सुरक्षाकवच खत्म कर दिया है। शुक्रवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि अब शिकायतों के निपटारे के लिए फैमली वेलफेयर कमेटी की समीक्षा की जरूरत नहीं होगी। यानी गिरफ्तारी पुलिस अधिकारी के विवेक पर होगी। हालांकि आरोपी के पास अग्रिम जमानत का विकल्प रहेगा।
पिछले साल 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की पीठ कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में गिरफ्तारी सीधे नहीं होगी। बल्कि दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक फैमिली वेलफेयर कमेटी बनाई जाए और कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए उससे पहले नहीं। जिसके बाद कई समाजसेवी संस्थाओं ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी।
फैसला सुरक्षित रख लिया था
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पीठ ने पिछले साल 13 अक्टूबर को कहा था कि इस मामले में दो जजों की पीठ ने 27 जुलाई को जो आदेश पारित कर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक संबंधी गाइडलाइंस बनाई है उससे वह सहमत नहीं हैं। हम कानून नहीं बना सकते हैं बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा था कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है। तीन जजों की पीठ ने दोबारा विचार करने का फैसला किया था और सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।