मणिपुर राज्य से सामने आए वीडियो, जिसमें दो आदिवासी महिलाओं को नग्न परेड करते और उनके साथ छेड़छाड़ करते देखा गया है, पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि "इससे वह व्यथित है"। साथ ही कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इसे "बिल्कुल अस्वीकार्य" करार देते हुए कहा कि महिलाओं को हिंसा में एक साधन के रूप में इस्तेमाल करना अस्वीकार्य है। बता दें कि कल ऑनलाइन सामने आए एक वीडियो ने देशभर में हंगामा खड़ा कर दिया।
इस वीडियो का स्वत: संज्ञान लेते हुए पीठ ने केंद्र और राज्य से इस मुद्दे पर उठाए गए कदम की जानकारी देने को कहा है। सीजेआई ने कहा, "बिल्कुल अस्वीकार्य। सांप्रदायिक संघर्ष के क्षेत्र में लैंगिक हिंसा भड़काने के लिए महिलाओं को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करना बेहद परेशान करने वाला है। यह संवैधानिक दुरुपयोग और मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है।जो वीडियो सामने आए हैं, उनसे हम बहुत परेशान हैं। अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती है, तो हम कार्रवाई करेंगे।"
पीठ ने आगे कहा कि उसे सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पता होना चाहिए, जिससे कि अपराधियों पर ऐसी हिंसा के लिए मामला दर्ज किया जा सके। पीठ ने कहा कि 'वीडियो मई महीने का हो सकता है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।'
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया, "महिलाओं को हिंसा के साधन के रूप में उपयोग करके मानव जीवन का उल्लंघन करना संवैधानिक लोकतंत्र के खिलाफ है। केंद्र और राज्य, उठाए गए कदमों से अदालत को अवगत कराएं।" गौरतलब है कि केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी घटना की निंदा करते हुए कहा, "यह अस्वीकार्य है।"
मेहता ने कहा, "सरकार भी इस घटना से बेहद चिंतित है। ऐसी घटनाएं पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं।" बता दें कि इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले को 28 जुलाई को सूचीबद्ध किया है। शीर्ष अदालत ने मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा से संबंधित मामलों को जब्त कर लिया है।