अदालत ने कहा कि दीवानी मानहानि के वाद के साथ-साथ फौजदारी मामले पर सुनवाई जारी रखने में कुछ भी अवैध नहीं है। उच्च न्यायालय ने कहा कि लंबित दीवानी वाद के मद्देनजर कुछ भी पूर्वाग्रह नहीं है और यह एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा चलाना (डबल जियोपार्डी) नहीं है और केजरीवाल की याचिका में दम नहीं है।
अदालत ने कहा कि फौजदारी और दीवानी मानहानि के मामले अलग-अलग प्रकृति के हैं। न्यायमूर्ति पी.एस. तेजी ने कहा, मानहानि के लिए दीवानी कार्यवाही के साथ-साथ फौजदारी कार्यवाही शुरू करने और उसे जारी रखने में कोई कानूनी बाधा नहीं है। केजरीवाल ने दावा किया था कि निचली अदालत के समक्ष सुनवाई पर रोक लगा दी जानी चाहिए क्योंकि उच्च न्यायालय के समक्ष एक दीवानी मुकदमा लंबित है।
दीवानी मुकदमे के लंबित रहने की वजह से फौजदारी कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग करने वाली केजरीवाल की याचिका खारिज करने के मजिस्ट्रेट अदालत के 19 मई के आदेश पर उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत का आदेश दुराग्रह, अनौचित्य, अवैधता और टिकने लायक नहीं होने की बातों से मुक्त है। उच्च न्यायालय ने अपने 30 पन्नों के आदेश में कहा, मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगाने की याचिकाकर्ता (केजरीवाल) के अनुरोध में कोई दम नहीं होने की वजह से खारिज किया जाता है और मौजूदा याचिका खारिज की जाती है। (एजेंसी)