इस शादी की खास बात एक और रही, इस शादी में कन्यादान की रस्म नहीं हुई। शादी में कन्यादान की रस्म न हो इसके लिए दूल्हे की मां नयना सहस्त्रबुद्धे दृढ़प्रतिज्ञ थीं। उनका मानना है कि कन्या कोई वस्तु नहीं है जिसका दान दिया जाए।
दोनों परिवारों का मानन था कि महिलाओं को हक मिलने चाहिए इसलिए विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार के लिए उन्होंने पुरुष के बजाय महिला पंडित का चुनाव किया।