अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आचार्य प्रशांत ने योग को सिर्फ आरोग्य का अभ्यास मानने की मुख्यधारा की धारणा को चुनौती देते हुए इसके बजाय भगवद गीता में इसकी गहन और परिवर्तनकारी जड़ों पर प्रकाश डाला।
गोवा में शनिवार को पीवीआर-आईनॉक्स ओसिया में ‘भगवद गीता के आलोक में योग’ विषय पर वहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि योग राहत का साधन नहीं है, बल्कि क्रांति का आह्वान है।
‘प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन’ और पीवीआर-आईनॉक्स द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम का प्रसारण मुंबई और गुड़गांव से लेकर पटना और भोपाल तक पूरे भारत में 40 से अधिक सिनेमाघरों में एक साथ किया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘योग क्रांति के बारे में है। यह वहीं से शुरू होता है, जहां आपके बहाने खत्म होते हैं। आप योग में रहकर वैसे ही नहीं रह सकते, जैसे आप थे।’’
वेदांतिक शास्त्रों की अपनी अलग व्याख्याओं के लिए मशहूर आचार्य प्रशांत ने इस बात पर जोर दिया कि ‘गीता का योग’ भौतिक नहीं बल्कि अस्तित्वगत है जो एक जीवंत अनुभूति है, न कि एक नियमित दिनचर्या।
उन्होंने बताया, ‘‘योग आसनों का समूह नहीं है। यह संतुलन की एक अवस्था है। यह कोई तकनीक नहीं है, यह सत्य को जीना है।’’
आचार्य प्रशांत 160 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि योग पलायनवाद नहीं है, बल्कि तैयारी है - दुनिया से पीछे हटना नहीं, बल्कि इसका सामना करने की तत्परता है।
उन्हें युवा पीढ़ी को व्यावहारिक तरीके से प्राचीन शास्त्रों से फिर से जुड़ने के लिए प्रेरित करने का श्रेय दिया जाता है।