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इनेलाे के एक मात्र विधायक अभय चौटाला का ऐलान, 26 जनवरी से पहले कृषि कानून वापस नहीं तो इस्तीफा

इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रधान महासचिव अभय चौटाला ने कृषि कानूनों के विरोध में हरियाणा विधानसभा...
इनेलाे के एक मात्र विधायक अभय चौटाला का ऐलान, 26 जनवरी से पहले कृषि कानून वापस नहीं तो इस्तीफा

इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रधान महासचिव अभय चौटाला ने कृषि कानूनों के विरोध में हरियाणा विधानसभा से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है। हरियाणा विधानसभा में इनेलो के एकमात्र विधायक चौटाला ने अल्टीमेटम दिया है कि अगर केंद्र सरकार ने 26 जनवरी तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं लिए तो वह किसानों के समर्थन में 27 जनवरी को हरियाणा विधानसभा की सदस्‍यता से इस्तीफा दे देंगे।

अभय चौटाला ने कहा कि वह प्रदेश भर में कृषि क़ानूनों और भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ गांव-गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाएंगे। क़ानूनों को बनाने से पहले केंद्र सरकार ने किसान संगठनों से राय लेना जरूरी नहीं समझा। अभय चौटाला ने कहा कि सरकार पूँजीपतियों को लाभ पहुंचने के लिए जीएसटी में संशोधन कर सकती है, लेकिन किसानों की मांग होने के बावजूद कृषि कानूनों को रद नहीं किया जा रहा है। सरकार किसानों के साथ गलत कर रही है और मैं इसके खिलाफ हूं। अगर सरकार किसानों की बात नहीं मानती तो मैं पद छोड़कर उनके साथ धरने पर बैठूंगा। 

करीब दो साल पहले इनेलो से टूट कर अभय के भाई अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग पार्टी जननायक जनता पार्टी(जजपा) बना ली थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में जजपा के खाते में 10 सीटें आई जबकि इनेलो एक सीट पर सिमट कर रह गई। 2014 के विधानसभा चुनाव मंे 20 सीटें जीतकर विपक्ष के नेता की भूमिका में रहे अभय चौटाला अब हरियाणा विधानसभा में इनेलो के अकेले विधायक हैं जबकि जजपा भाजपा के साथ गठबंधन में सरकारी की प्रमुख भागीदार है।

जजपा नेता दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री के तौर पर सरकार में नंबर दो की भूमिका में हैं। किसान आंदोलन के मुद्दे पर जजपा पर भी इसके बागी विधायकों का सरकार से समर्थन वापस लेने का दबाव बना हुआ है। देवी लाल की किसानी सियासी विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करने वाली जजपा के नेता उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का हरियाणा की तमाम खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन मसले पर बहिष्कार किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संकट के समय किसानों से दूरी बनाए रखना जजपा की ग्रामीण सियासत पर भारी पड़ सकता है और इसका खामियाजा भाजपा जजपा गठबंधन सरकार को आगामी ग्राम पंचायत चुनाव में भारी हार के रुप मंे भुगतना पड़ सकता है।

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