बारह साल पहले उस दुर्भाग्यपूर्ण रविवार से पहले तक अधिकतर भारतीयों को यह तक नहीं पता था कि सुनामी शब्द की शुरूआत किस अक्षर से होती है। भारत की उस पीढ़ी की स्मृति में सुनामी शब्द का नामोनिशान तक नहीं था लेकिन उसके बाद से सभी यह समझ चुके हैं कि सुनामी धरती पर सबसे ज्यादा तबाही लाने में सक्षम प्राकृतिक ताकतों में से एक है।
लेकिन इससे सीख लेते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में भारत ने सबसे पहले अपने हैदराबाद स्थित अत्याधुनिक केंद्र के जरिए दिन रात सुनामी की अग्रिम चेतावनी देने का काम शुरू किया जो अभी भी जारी है। हालांकि परेशानी तब आती है जब मछुआरे कभी-कभार गहरे समुद्र में लगे सेंसरों के इलेक्ट्रॉनिक हिस्से और सौर पैनलों के साथ छेड़छाड़ कर देते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय चेतावनी प्रणाली ने इस एक दशक में कभी भी गलत चेतावनी जारी नहीं की है जबकि इससे कहीं पुराना और प्रतिष्ठित प्रशांत सुनामी चेतावनी केंद्र नियमित तौर पर जो चेतावनी जारी करता है वह कभी-कभी सच साबित नहीं होती, ऐसे में प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं।
आपदा जोखिम में कमी पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय (यूनएआईएसडीआर) का आकलन बताता है कि सुनामी की घटनाएं कम होती हैं लेकिन यह जानलेवा होती है। बीते 100 साल में सुनामी की 58 घटनाओं में 2,60,000 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यानी हर आपदा में औसतन 4,600 लोगों की मौत हुई है। यह आकंड़ा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
भारत सरकार की अध्यक्षता में पहला विश्व सुनामी जागरूकता दिवस पांच नवंबर 2016 को मनाया जाएगा। इस मौके पर यूएनएआईएसडीआर के साथ मिलकर नई दिल्ली आपदा जोखिम में कमी पर एशिया के मंत्री स्तरीय सम्मेलन का आयोजन करेगी। यूएनएआईएसडीआर के मुताबिक पांच नवंबर 1854 को उच्च तीव्रता के भूकंप के बाद जापान में एक ग्रामीण ने सुनामी की अग्रिम चेतावनी जारी की थी। सुनामी की अग्रिम चेतावनी का यह पहला दस्तावेज है।
सुनामी सागरों में उसी गति से चलती है जिस गति से एक विमान उड़ता है और ये लहरें शांत पड़ने से पहले धरती का कई बार चक्कर लगा सकती हैं। दिलचस्प बात यह है कि गहरे पानी में चलने वाले जहाज उनके नीचे से गुजरने वाली सुनामी का अहसास भले नहीं कर पाएं लेकिन जैसे ही सुनामी की लहरें जमीन की ओर बढ़ती हैं, उनकी ऊर्जा केंद्रित हो जाती है और इससे 20 से 30 मीटर उंची लहरें उठती हैं जो कई किलोमीटर तक ऊंची जा सकती हैं।
भारत की 7,500 किमी लंबी तटरेखा पर सुनामी का खतरा आमतौर पर मंडराता रहता है। वर्ष 2004 में आई सुनामी के बाद भारत ने इसकी अग्रिम चेतावनी प्रणाली को स्थापित करने का फैसला लिया था। इसे सक्रिय रूप से काम करने में तीन साल का वक्त लगा। इसकी निर्माण लागत दो करोड़ डॉलर आई। इसमें लगभग दर्जनभर लोग काम करते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि समय रहते सुनामी की चेतावनी जारी की जा सके। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह के मुताबिक भारतीय सुनामी अग्रिम चेतावनी केंद्र (आईटीईडब्ल्यूसी) वर्ष 2007 से काम कर रहा है। अब यह हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) के जरिए पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के लिए सुनामी वाच प्रोवाइडर (आरटीडब्ल्यूपी) के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है।
यह केंद्र हिंद महासागर क्षेत्र में आने वाले और सुनामी पैदा कर सकने में सक्षम भूकंपों का 10 मिनट के भीतर पता लगाने में सक्षम है और संबद्ध अधिकारियों को इसकी चेतावनी 20 मिनट में जारी कर देता है। भारतीय प्रणाली दिन रात काम करती है और आईएनसीओआईएस प्रणाली दिन हो या रात कभी भी संदेह दूर करने के लिए तैयार रहती है। हैदराबाद स्थित इस प्रणाली ने कभी भी गलत चेतावनी जारी नहीं की है। यहां के वैग्यानिक चेतावनी तब तक जारी नहीं करते हैं जब तक कि गहरे महासागर में लगे सेंसर दबाव में वास्तविक परिवर्तन का पता नहीं लगा लेते।
भारत समेत हिंद महासागर के अन्य देशों ने सात और आठ सितंबर को हुई सुनामी मॉक ड्रिल में हिस्सा लिया था। आईएनसीओआईएस के मुताबिक अपनी तरह के ऐसे पहले प्रशिक्षण में तटीय भारत के 33 जिलों के लगभग 350 तटीय गांवों से 40,000 लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर सफलतापूर्वक पहुंचाया गया। आईएनसीओआईएस के अधिकारियों ने बताया कि भारत के परमाणु ऊर्जा संस्थानों ने इस मॉक ड्रिल में भाग नहीं लिया जबकि ऐसे कई संस्थान तटीय भारत में स्थित हैं।
याद रहे कि जापान में 2011 में फुकुशिमा में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में भारी तबाही मची थी तो इसकी वजह यह थी कि भयावह सुनामी से निबटने की उनकी कोई तैयारी नहीं थी। हालांकि बताया जाता है कि भारत के सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में सेंसर लगे हुए हैं जो उच्च तीव्रता का भूकंप आने पर रिएक्टरों को ठप कर देते हैं।
भाषा