भारत में कोविड-19 मामलों पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि एक अप्रैल को एक ही दिन में कोरोना संक्रमण के 81,466 नए सक्रिय मामले सामने आए थे। वहीं, 24 घंटे में एक 469 मौतें भी दर्ज की गई थी। यदि इन दैनिक मौत के आंकड़ों से पिछले साल की पहली लहर के आंकड़े की तुलना की जाए तो वर्तमान के आंकड़े ज्यादा मामूली हैं। भारत में पहली बार 24 घंटों के भीतर एक लाख से अधिक कोविड-19 के नए मामले सामने आए हैं। सोमवार को देश में कोरोना वायरस के 1.03 लाख मामले दर्ज किए गए हैं।
जब पिछले साल अप्रैल में देश में पहली लहर आई थी, तब रोज आने वाले एक्टिव मामलो ने पहली बार सितंबर में 80,000 के आंकड़ों को पार किया था, जबकि 4 सितंबर को 83,341 मामले सामने आए थे। उसी दिन मृत्यु का आंकड़ा 1,096 को छू गया था।
जब दोनों वर्षों के मृत्यु के आंकड़ों की तुलना करें तो ये स्पष्ट होता है कि रोज मरने वालों की संख्या दूसरी लहर में आधे से भी कम है। अगर हम ये निष्कर्ष निकाले कि संक्रमण के दस दिन बाद मृत्यु होती है तो दोनों मामलों में यही बात लागू होगी।
कुछ वाइरोलॉजिस्ट इस बात से सहमत हैं कि पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में मौतों की संख्या कम है और यह देश के लिए सौभाग्य की बात है। हालांकि, वह इस बात से असहमत हैं कि ऐसा इसलिए हैं क्योंकि वायरस मामूली हो गया है। वे इसके लिए अलग-अलग कारण बताते हैं।
प्रसिद्ध एपिडेमियोलोजिस्ट डॉ जयप्रकाश मुलियाल कहते हैं कि हमारे पास संक्रमितों की उम्र के हिसाब से डेटा नहीं हैं। इसलिए मैं केवल यह मान सकता हूं कि पहली लहर के दौरान जो हुआ था उससे दूसरी लहर में अधिक युवा आबादी संक्रमित हो रही है।
उन्होंने आगे कहा कि एक और कारण हो सकता है। इस बार डॉक्टर मरीजों की देखभाल करने के लिए आश्वस्त हो गए हैं। इससे पहले कई डॉक्टर कोरोना मरीज के पास भी जाने से डरते थे। इस बार इसमें सुधार हुआ है जिसके परिणामस्वरूप कम मौतें हो रही हैं।
अशोका विश्वविद्यालय में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के निदेशक के रूप में जाने-माने एक अन्य प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील कहते हैं कि वो डॉ. मुलियाल की बातों से पूरी तरह सहमत हैं। वो कहते हैं कि यदि ये आंकड़े सत्यापित है तो उसके तीन संभावित कारण हो सकते हैं। पहला कि युवा लोग संक्रमित हो रहे हैं जिनमें गंभीर बीमारी और मृत्यु की संभावना कम हैं। दूसरा डॉक्टरों के पास ज्यादा अनुभव है और वो इन मामलों को बेहतर तरीके से मैनेज कर रहे हैं। तीसरा ऐसे संपन्न लोग संक्रमित हो रहे हैं जिनकी स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर है। ये ज्यादातर मुंबई में देखा जा रहा है।
उन्होंने ये भी कहा कि वायरल वेरिएंट में कम मौत की संख्या को जोड़ने के लिए अब तक कोई सबूत नहीं है। सरकार के साथ काम करने वाले कई अन्य वरिष्ठ एपिडेमियोलोजिस्ट इस बात से सहमत हैं कि मौतें कम हो रही हैं।
हालांकि, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तहत एक सरकारी अनुसंधान निकाय, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के निदेशक डॉ. मनोज वी. मुरेकर इसे अलग रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि दैनिक मौंत के आंकड़े कम हैं क्योकिं सक्रिय मामलों में अचानक वृद्धि हुई है। ये मौत के आंकड़ों में बदलने के लिए समय ले रहा है। पहली लहर में ऐसा नहीं था।
इसके अलावा मुरेकर ने कहा कि आप एक ही समय में दो चरणों के दौरान दैनिक सक्रिय मामलों को देख रहे हैं और कुल सक्रिय मामलों को नहीं। पहली लहर में ये आज की तुलना में बहुत अधिक था। देश में 4 सितंबर, 2020 को एक्टिव केस 8.5 लाख के आसपास था, जबकि आज यह लगभग 7,37,870 लाख है। डॉ. मुरेकर ने यह भी चेतावनी दी है कि लोगों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है क्योकि इस बार की स्थिती पहली लहर से भी बदतर हो सकती है।