हेमन्त सरकार ने रघुवर की नियोजन नीति को वापस ले लिया है। इस तरह अब जिले में ही जिला स्तरीय पदों पर जिले के लोगों की वर्ग तीन और वर्ग चार के पदों पर में नियुक्ति पर विराम लग गया है। अनुसूचित 13 जिलों और गैर अनुसूचित 11 जिलों में शतप्रतिशत स्थानीय लोगों को नियुक्ति के लिए दस साल के लिए आरक्षण नीति लागू की गई थी। हेमन्त सरकार ने अधिसूचित एवं गैर अधिसूचित दोनों तरह के जिलों की नियुक्ति नियमावली को वापस कर लिया है। इस तरह प्रक्रिया में रही हजारों नियुक्तियों पर रोक लग गया है। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा है कि यह साल नियुक्तियों का वर्ष होगा। विभिन्न तरह के कोई डेढ़ लाख पद रिक्त हैं। ऐसे में युवाओं को सरकार की नई नीति का इंतजार रहेगा।
इधर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने नियोजन नीति की वापसी का विरोध किया है। बाबूलाल ने कहा है कि यह फैसला झारखण्ड के हित में नहीं है। पहले से ही 13 जिले अनुसूचित जिले में शामिल थे। शेष 11 जिलों को भी इसमें शामिल करने की मांग उठती रही है। ऐसे में सभी 24 जिलों को सूचीबद्ध करने के बदले नीति को ही समाप्त कर दिया जाना किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं। झारखंड विरोधी निर्णय है। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बाद में कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री अमर बाउरी के नेतृत्व में कमेटी बनाई थी। कमेटी ने भी शेष 11 जिलों को इसमें शामिल करने की सिफारिश की थी। संविधान के अनुच्छेद 16 ( 3) में प्रावधान है कि वर्ग तीन एवं चार के पदों को कुछ वर्षों के लिए राज्य सरकार आरक्षित कर सकती है।
फैसले का असर
भाजपा की रघुवर सरकार ने 2016 में नियोजन नीति बनाई थी जिसके तहत राज्य कर्मचारी चयन आयोग ने हाई स्कूल शिक्षकों के करीब 16 हजार 572 शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी। उनमें 8423 शिक्षकों को नियुक्त कर लिया गया। जिन्हें नियुक्ति पत्र मिल चुका है उनकी नियुक्ति तत्काल बरकरार रहेगी मगर जिनकी प्रक्रियाधीन थी उनकी नियुक्ति नहीं होगी। अब नये सिरे से परीक्षा में शामिल होना होगा। सोनी कुमारी ने दूसरे जिले में नौकरी के लिए आवेदन दिया था। आवेदन इस आधार पर रद कर दिया गया कि वह उस जिले की नहीं है।
ऐसे में इस नीति के खिलाफ सोनी हाई कोर्ट चली गई। उसका पक्ष था कि शतप्रतिशत आरक्षण संविधान के खिलाफ है। हाई कोर्ट ने उसके तर्क को सही मानते हुए नियुक्तियों को रद करते हुए सरकार की नियोजन नीति को गलत करार दिया था। नियुक्ति रद करने के फैसले के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ शिक्षक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए नियुक्त हो चुके लोगों की सेवा बहाल रखने का निर्देश दिया। राज्य सरकार ने सोनी कुमारी के केस के मद्देनजर ही नियोजन नीति को वापस लिया है। नियुक्त शिक्षकों का मामला अंतिम रूप से सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रभावित होगा। राज्य कर्मचारी चयन आयोग ने इंटर स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा, पंचायत सचिव व लिपित, उत्पाद सिंपाही, विशेष शाखा सिपाही प्रतियोगिता परीक्षा सहित कोई तीन हजार पदों पर नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू कर रखी है। कुछ की लिखित परीक्षा भी हो चुकी है। अब इन परीक्षाओं के रद होने की उम्मीद है।
नियुक्ति के फैसले और भी
नियुक्तियां विवादों में रही हैं तो कुछ जटिलताओं के कारण अधूरी रहीं। इसे देखते हुए हेमन्त सरकार ने कुछ और राहत के फैसले लिये हैं। झारखंड लोग सेवा आयोग ने 2016 में अंतिम परीक्षा ली। के बाद विभिन्न कारणों से परीक्षाएं नहीं हुईं। परीक्षा न होने से उम्र पार कर चुके लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने अधिकतम उम्र सीमा का कट ऑफ डेट 1 अगस्त 2016 निर्धारित किया है। इससे निर्धारित अधिकतम उम्र सीमा चार साल सात माह तक पार कर चुके लोगों को लाभ मिल सकेगा। साथ ही आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को राहत देने के लिए तय किया गया है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों की संख्या पीटी में रिक्त पदों की संख्या का 15 गुना होगी। इसके लिए सामान्य जाति के अंतिम चयनित उम्मीदवार को मिले अंक से आठ प्रतिशत नीचे जाने की बाध्यता खत्म कर दी गई है। साक्षात्मार में भी उम्मीदवारों की संख्या ढाई गुना होगी। दरअसल पूर्व की कई परीक्षाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में पीटी पास नहीं कर पा रहे थे जिसकी वजह से इनके कोटे के पद रिक्त रह जा रहे थे।
शैक्षणिक योग्यता कम होने या उम्र अधिक होने के कारण पुनर्वास प्रभावित ( विस्थापित) युवा नौकरियों से वंचित रह जाते थे। उन्हें राहत देने के लिए उम्र सीमा में तीन साल की छूट दी गई है। जिनकी जमीन क्रमश: दो एकड़ से कम, दो से तीन एकड़, तीन से चार एकड़ तक, चार से पांच एकड़ और पांच एकड़ से अधिक गई है उन्हें क्रमश: के आधार पर लोगो को दो, चार, छह, आठ और दस अंक देकर मेरिट लिस्ट तैयार की जायेगी।