विधानसभा चुनाव बीत गए और अब कड़वाहट भी खत्म हो रही है। आगामी राजनीतिक समीकरणों का ध्यान रखकर ऐसा हो रहा है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मेहरबान हो रही है। दोनों राज्यों पर विशेष योजनाओं के पैकेज की झड़ी लगाने की तैयारी है। दोनों राज्यों के-मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में केंद्रीय मंत्रियों को विशेष तौर पर भेजा गया था। केंद्रीय मंत्रियों की मुख्यमंत्रियों के साथ मुलाकात के बाद दोनों राज्यों के विभिन्न विभागों के सचिवों के दिल्ली दौरे बढ़ गए हैं।
दोनों राज्य ऐसे रहे हैं, जहां की राजनीति का अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी खासा प्रभाव पड़ता है। बंगाल से बांग्लादेश की सीमा सटी है और तमिलनाडु की राजनीति पर श्रीलंका के मामले में देश की विदेश नीति खासा प्रभाव डालती है। भौगोलिक कारणों से दोनों राज्य शुरू से ही केंद्र के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। अब देश के ताजा सियासी हालात के चलते भी दोनों राज्यों को लेकर केंद्र की रुचि बढ़ रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर फेडरल फंड की कवायद इनमें से खास मानी जा रही है।
बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी और उनके कैबिनेट के सहयोगियों ने 27 मई को जब शपथ ली, तब उस समारोह में केंद्रीय वित्ता एवं सूचना- प्रसारण मंत्री अरुण जेटली, बंगाल के आसनसोल से सांसद और केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री बाबुल सुप्रीयो भी पहुंचे थे। वे दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधि के तौर पर वहां पहुंचे थे। शपथ ग्रहण के इस समारोह के 48 घंटा पहले कोलकाता से सटे न्यू टाउन को 'स्मार्ट सिटी’ की लिस्ट में शामिल कर केंद्र सरकार ने ममता बनर्जी संकेत तो दे ही दिया। इससे मुग्ध थीं ममता बनर्जी।
अरुण जेटली से मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी ने बंगाल पर लगभग 30 हजार करोड़ रुपये के केंद्रीय कर्ज का मुद्दा उठाया। पिछले पांच साल वह मांग कर रही हैं कि या तो केंद्र इस कर्ज को माफ कर दे या फिर यह व्यवस्था की जाए कि इसकी किस्त कुछ साल न भरनी पड़े। इस दौरान कोई ब्याज बकाए में न चढ़ाया जाए। साथ ही, जन वितरण प्रणाली, कन्या और बाल योजनाएं, अल्पसंख्यक, ढांचागत विकास आदि योजनाओं में केंद्रीय धनराशि बढ़ाने की मांग है ही। अरुण जेटली ने ममता बनर्जी को यह कहते हुए भरोसा दिया है, 'बंगाल में एक दौर था, जब खूब उद्योगीकरण हुआ। वाममोर्चा के 34 साल के शासन में उद्योगों की हालत खराब हो गई।’ इस स्थिति से पार पाना ममता बनर्जी समेत उनके सहयोगियों के लिए एक चैलेंज है। केंद्र सरकार इसमें हर तरह की मदद करेगी। अरुण जेटली ने ममता बनर्जी को भरोसा दिया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों की मरम्मत से लेकर राजस्व घाटे तक में बंगाल की मदद करना केंद्र का संवैधानिक दायित्व है। जाहिर है, अगले कुछ दिनों में बंगाल में केंद्र की ओर से विशेष पैकेज की झड़ी लगने वाली है। यह स्थिति बंगाल के साथ ही नहीं, तमिलनाडु के साथ भी रहने वाली है। किस तरह के होंगे विशेष पैकेज? आधिकारिक तौर पर किसी राज्य को विशेष आर्थिक पैकेज देना संभव नहीं। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल- दोनों ही राज्यों के लिए नई योजनाएं घोषित की जाएंगी। विशेष रेल परियोजनाएं घोषित की जा सकती हैं। शहरी विकास, ऊर्जा मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय कई योजनाएं घोषित कर सकते हैं।
तमिलनाडु में जयललिता के शपथ ग्रहण में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडु और केंद्रीय मंत्री राधाकृष्णन गए थे। राधाकृष्णन तमिलनाडु की कन्याकुमारी सीट से भाजपा सांसद हैं। जयललिता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट कर बधाई दी थी और उम्मीद जताई कि केंद्र और तमिलनाडु की नई सरकार मिलकर काम करेंगी। ममता बनर्जी को खुद फोन कर जीत की बधाई दे चुके हैं नरेंद्र मोदी। दोनों राज्यों में जीतने वाली पार्टी के सुप्रीमो के साथ प्रधानमंत्री मोदी की इस सदाशयता के बाद केंद्रीय मंत्रियों के दौरे लगे और अब सचिव स्तरीय कवायद चल रही है।
जे. जयललिता ने गुड्स एंड सर्विसेज टैञ्चस (जीएसटी) और मेडिकल एंट्रेंस परीक्षा (नीट) को लेकर केंद्र के फैसले से असहमति जताते हुए पत्र लिखे हैं। नीट को लेकर ममता बनर्जी भी विरोध जता चुकी हैं। इसके अलावा तमिलनाडु ने अभी तक केंद्र की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को अपने यहां लागू करने से मना किया है। वहां की सरकार अपनी अनाज वितरण प्रणाली को बेहतर मानती है। इस स्कीम के तहत जयललिता की सरकार हर परिवार को पांच किलो तक अनाज पर सब्सिडी देती है। इसके अलावा वहां 'उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना’ (उजाला) को भी लागू नहीं किया गया है। जयललिता ने पिछले साल मोदी को पत्र लिखकर जन वितरण प्रणाली की केंद्रीय योजना लागू करने से मना करते हुए एक साल बाद, यानी चुनाव के बाद इस पर विचार करने को कहा था। दरअसल, जयललिता चाहती हैं कि तमिलनाडु के कर्ज में फंसे बिजली वितरण कॉरपोरेशन (तमिलनाडु जेनरेशन एंड डिस्ट्रीद्ब्रयूशन कॉरपोरेशन लिमिटेड) पर जमा हो गए 75 हजार करोड़ रुपये का कर्ज उतारने में केंद्र सरकार मदद करे। उन्हें हर दो महीने में सौ यूनिट बिजली मुफ्त करने का अपना चुनावी वायदा पूरा करना है। इस बारे में जयललिता से बात करने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को लगाया गया है।
अगले दिनों में केंद्र सरकार ममता बनर्जी और जे. जयललिता- दोनों ही के राज्यों को विभिन्न मदों में विशेष पैकेज के कई उपहार देगी। इसके राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं। दरअसल, दोनों पार्टियों को कांग्रेस, फेडरल फ्रंट या अन्य किसी गैर-भाजपाई गठबंधन से दूर रखने की कोशिश में है एनडीए। 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह रणनीति अक्चितयार की गई है। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी के अनुसार, 'हमारी पार्टी प्रस्तावित फेडरल फ्रंट के पक्ष में है। ममता बनर्जी की इस बारे में राय स्पष्ट है। लेकिन मुद्दों के आधार पर हम केंद्र को समर्थन भी देते रहेंगे। वह कहते हैं, 'जहां तक स्मार्ट सिटी और केंद्रीय पैकेज का सवाल है, बंगाल की अरसे से अनदेखी की गई है। केंद्र कुछ करना चाहे तो स्वागत है।’
नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की ओर से दिखाए जा रहे सौहार्दपूर्ण व्यवहार का असर दिखने लगा है। इसके राजनीतिक मायने लगाए जा रहे हैं। इस बार के विधानसभा नतीजों के अनुसार, ममता बनर्जी और जयललिता की पार्टियां कुल 63 लोकसभा सीटों पर मजबूत हुई हैं। विधानसभा सीटों पर मिले वोटों के आधार पर तृणमूल कांग्रेस की झोली में बंगाल की 42 में से 37 सीटें दिख रही हैं और जयललिता की पार्टी की 26 सीटें। 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 34 और जयललिता को 38 सीटें मिली थीं। दोनों की सीटें मिलाकर लोकसभा में अहम स्थिति बन रही है। जयललिता की पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (एआईएडीएमके) के राज्यसभा में 12 सदस्य हैं। राज्यसभा में ममता बनर्जी की पार्टी की स्थिति भी मजबूत है। इस लिहाज से ममता और जयललिता अगले तीन साल तक किसी विपक्षी शिविर में न चली जाएं- इस कोशिश में बताए जा रहे हैं भाजपा नेता।
फेडरल फ्रंट की कवायद में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जैसे नेता भी ममता और जयललिता के साथ संपर्क बनाए हुए हैं। ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह में ये सभी जुटे थे। उत्तार प्रदेश में सत्तााधारी समाजवादी पार्टी के नेता भी भविष्य को ध्यान में रखते हुए इन दोनों मजबूत क्षत्रपों के साथ संपर्क में हैं। ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह में उत्तार प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा के कई वरिष्ठ नेताओं, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पहुंचे हुए थे।
जाहिर है, केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मजबूत विपक्षी गोल तैयार करने में जुटे नेता- दोनों ही पक्ष भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखकर सधे अंदाज में मजबूत क्षत्रपों को अपनी ओर करने में जुटे हैं।