उन्होंने विभाजनकारी विचारों को असल गंदगी करार दिया जो गलियों में नहीं बल्कि हमारे दिमाग में और समाज को विभाजित करने वाले विचारों को दूर करने की अनिच्छा में है। प्रणब ने अहमदाबाद में कार्यक्रमों की श्रृंखला को संबोधित करते हुए भारत के बारे में महात्मा गांधी की सोच का जिक्र किया और कहा कि उन्होंने एक समावेशी राष्ट्र की कल्पना की थी जहां देश का हर वर्ग समानता के साथ रहे और उसे समान अवसर मिलें। सरकार के स्वच्छता अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, बापू के अनुसार स्वच्छ भारत का मतलब स्वच्छ दिमाग, स्वच्छ शरीर और स्वच्छ वातावरण से था।
साबरमती आश्रम में अभिलेखागर और शोध केंद्र का उद्घाटन करते हुए प्रणब ने कहा, भारत की असल गंदगी हमारी गलियों में नहीं, बल्कि हमारे दिमागों में और समाज को उनके तथा हमारे और शुद्ध एवं अशुद्ध के बीच बांटने के विचारों से मुक्ति पाने की अनिच्छा में है। जुलाई, 2012 में देश का सर्वोच्च पद संभालने के बाद गुजरात के अपने पहले तीन दिवसीय दौरे पर आए प्रणब ने कहा, हमें प्रशंसनीय और स्वच्छ भारत मिशन को हर हाल में सफल बनाना चाहिए। हालांकि इसे मस्तिष्कों को स्वच्छ करने और गांधी जी की सोच के सभी पहलुओं को पूरा करने के लिए एक अत्यंत बड़े और वृहद प्रयास की महज शुरुआत के रूप में देखना चाहिए।
राष्ट्रपति ने यहां गुजरात विद्यापीठ के 62वें दीक्षांत समारोह को भी संबोधित किया और कहा, गांधी ने अपने जीवन में और मृत्यु के समय भी साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए संघर्ष किया। शांति एवं सद्भाव की शिक्षा ही समाज में विघटनकारी ताकतों को नियंत्रित करने और उन्हें नई दिशा देने की कुंजी है। कथित असहिष्णुता पर बहस के बीच प्रणब ने बार-बार भारत की उदार परंपराओं पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अहिंसा नकारात्मक शक्ति नहीं है और हमें सार्वजनिक अभिव्यक्ति को सभी तरह की हिंसा, शारीरिक और मौखिक हिंसा...से मुक्त करना चाहिए। केवल एक अहिंसक समाज ही हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खासकर वंचित लोगों समेत सभी वर्गों के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि गांधी जी ने राम का नाम लेते हुए हत्यारे की गोली खाकर हमें अहिंसा की एक ठोस सीख दी। प्रणब ने कहा, हर दिन, हम अपने चारों ओर अभूतपूर्व हिंसा होते देखते हैं। इस हिंसा के मूल में अंधेरा, डर और अविश्वास है। जब हम इस फैलती हिंसा से निपटने के नए तरीके खोजें, तो हमें अहिंसा, संवाद और तर्क की शक्ति को भूलना नहीं चाहिए।