मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस समझौते का उद्देश्य गंगा नदी के संरक्षण के लिए उत्तरदायी राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय हितधारकों को एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन दृष्टिकोण के लिए सक्षम बनाना है। यह भारत और जर्मनी के बीच जानकारी के आदान-प्रदान और सामरिक नदी बेसिन प्रबंधन मामलों के व्यावहारिक अनुभव, प्रभावी डाटा प्रबंधन प्रणाली तथा जन भागीदारी पर आधारित होगा।
जल संसाधन मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह परियोजना अन्य राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय पहलों के साथ समन्वय बनाकर काम करेगी। इसमें भारत और जर्मनी की राष्टीय शहरी नीति को समर्थन और पर्यावरण अनुकूल सतत औद्योगिक उत्पादन (एसईआईपी) जैसी द्विपक्षीय परियोजनाएं शामिल हैं।
इस परियोजना की अवधि तीन साल होगी जो 2016 से 2018 तक की अवधि की होगी। इस परियोजना में जर्मनी का अंशदान 22.5 करोड़ रुपये का होगा। शुरूआत में उत्तराखंड पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और गंगा से जुड़े दूसरे राज्यों तक इसका दायरा बढ़ाया जाएगा।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य राइन और दान्यूब नदी के लिए इस्तेमाल की गई सफल नदी बेसिन प्रबंधन नीति को अपनाना है। इसके अतिरिक्त जहां तक संभव हो सके गंगा नदी का प्राचीन वैभव लौटाने के लिए इस नीति को यहां दोहराना है। इस समझौते पर भारत में जर्मनी के राजदूत डॉ. मार्टिन ने और जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय में सचिव शशि शेखर की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।
इस अवसर पर जर्मन राजदूत ने कहा कि उनका देश गंगा नदी के प्रति आस्था और उसके सांस्कृतिक महत्व को समझता है तथा मां गंगा को उसका प्राचीन वैभव वापस लौटाने के लिए अपना श्रेष्ठ प्रयास करेगा। जर्मन सरकार का आभार प्रकट करते हुए शेखर ने कहा कि जर्मनी से मिलने वाला तकनीकी सहयोग गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने में अत्यंत फलदायी साबित होगा। उन्होंने कहा कि हम गंगा नदी को निर्मल बनाने के लिए और तेज गति से आगे बढ़ेंगे।
उल्लेखनीय है कि नमामि गंगे भारत सरकार का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नयी उर्जा से गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करना और संरक्षण करना है। इस संबंध में भारत सरकार गंगा संरक्षण के लिए कई दूसरे देशों से सहायता ले रही है। जर्मन सरकार को राइन, एल्ब और दान्यूब जैसी यूरोपीय नदियों के निर्मलीकरण और संरक्षण का व्यापक अनुभव है और वह भारत सरकार के साथ मिलकर इस काम को करने के लिए उत्सुक है।