कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दलों ने शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात की और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया। सूत्रों के मुताबिक, सात दलों के 60 से अधिक राज्यसभा सांसदों ने दीपक मिश्रा के खिलफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया है। नोटिस पर दस्तखत करने वाले सांसद कांग्रेस, एनसीपी, माकपा और भाकपा, समाजवादी पार्टी और बसपा के हैं।
इन दलों के नेताओं ने गुरुवार सुबह संसद में बैठक की और महाभियोग के नोटिस को अंतिम रूप दिया। बैठक के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने पुष्टि की कि वे मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का नोटिस देने जा रहे हैं।
संसद में बैठक करने वाले नेताओं में भाकपा के डी राजा और एनसीपी के वंदना चव्हाण के अलावा कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और रणदीप सुरजेवाला शामिल थे। सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके भी पहले महाभियोग के पक्ष में थी, लेकिन अब वे इसका हिस्सा नहीं हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट द्वारा जज बीएच लोया मौत मामले में स्वतंत्र जांच की याचिका खारिज करने के एक दिन बाद दिया गया है। जज लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे। उनकी मौत की जांच की याचिका को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने खारिज कर दी थी।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीफ जस्टिस के खराब व्यवहार पर उठाया सवाल
राज्यसभा के उपसभापति को नोटिस देने के बाद विपक्षी दलों के नेता गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला और डी राजा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश के खराब व्यवहार पर सवाल उठाया। आजाद ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव पर सात दलों के 71 सांसदों का हस्ताक्षर है और पांच मुद्दों को लेकर यह प्रस्ताव रखा गया है। वहीं, कपिल सिब्बल ने कहा कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को उनके खराब व्यवहार को लेकर हटाया जाए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद कुछ नहीं बदला है। मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिए गए प्रशासनिक फैसलों पर सवाल उठे हैं।
सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि जब मुख्य न्यायधीश वकील थे तो एक जमीन के संबंध में उन्होंने झूठा हलफनामा दिया था और जब सीबीआइ मुख्य न्यायाधीश के पास गई और कहा कि उनके पास सबूत है तो उन्होंने कार्रवाई को मंजूरी नहीं दी।
महाभियोग की क्या है प्रक्रिया
राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के दस्तखत की जरूरत होती है, जबकि लोकसभा में इसके लिए 100 सांसदों के समर्थन की जरूरत पड़ती है। नोटिस मिलने के बाद राज्यसभा के सभापति यह तय करते हैं कि इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रस्ताव में मेरिट है या नहीं। अगर वह संतुष्ट हो जाते हैं तो इस मामले के लिए एक समिति का गठन कर सकते हैं या दूसरी स्थिति में प्रस्ताव को खारिज कर सकते हैं।
बता दें कि अगर यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो देश के इतिहास में यह पहली बार होगा जब सुप्रीम कोर्ट के किसी मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पास होगा।