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गजेंद्र चौहान की नियुक्ति पर सांसद का विरोध

फिल्म-टेलीविजन संस्थान का अध्यक्ष गजेंद्र चौहान को बनाने के खिलाफ अब सांसद उतरे मैदान में, कहा ये संस्थान का अपमान, वापस ले नियुक्ति सरकार
गजेंद्र चौहान की नियुक्ति पर सांसद का विरोध

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे, के अध्यक्ष के तौर पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के विरोध में उतरे संस्थान के छात्रों के समर्थन में आज चार सांसदों ने भी अपनी आवाज मिलाई है। उन्होंने कहा कि पिछले 11सालों में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ाव और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करने के तौहफे के तौर पर महाभारत सीरियल के युधिष्टिर गजेंद्र चौहान को यह पद सौंपा गया है, जो सरासर इस सम्मानित पद का राजनीतिकरण है। इस नियुक्ति के विरोध में आज सांसद के सी त्यागी (जनता दल-यूनाइटेड), राजीव शुक्ला (कांग्रेस), मोहम्मद सलीम (माकपा) और डीपी त्रिपाठी (एनसीपी) ने बाकायदा बयान जारी करके सरकार से मांग की है कि इस नियुक्ति को रद्द करके किसी योग्य व्यक्ति की नियुक्ति करें।

इस बाबतआउटलुक को केसी त्यागी ने बताया, यह कितना शर्मनाक है कि महाभारत जैसे सीरियल में भूमिका करने वाले और सॉफ्ट पोर्न जैसी बदनाम फिल्मों में भूमिका निभाने वाले व्यक्ति को देश के शीर्ष फिल्म प्रशिक्षण संस्थान में बैठा दिया गया है। इससे इस सरकार का मानसिक दिवालियापन जाहिर होता है। इन लोगों के पास आला संस्थानों के शीर्ष पदों को भरने के लिए भी कायदे के लोग नजर नहीं आ रहे हैं।

हैरानी की बात है कि गजेंद्र चौहान को इस पद के लिए तब चुना गया जब इस पद के लिए उम्मीदवारों की सूची में मशहूर गीतकार गुलजार, फिल्मकार श्याम बेनेगल और अदूर गोपालकृष्णन जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लोग शामिल थे। इन सांसदों का कहना है कि एफटीआई भारतीय सिनेमा की विरासत को गौरवान्वित करता है। ऐसे संस्थान में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करती है। संस्थान के छात्रों ने जब इस नियुक्ति का विरोध किया और सड़कों पर उतरे तो उनकी मांगों को सिरे से अनसुना कर दिया गया। सांसदों का मानना है कि छात्रों की मांगों को पूरी तरह से नकार देना संस्थान और उसके पीछे बैठे लोगों के अलोकतांत्रिक सोच को परिलक्षित करता है।

सांसदों ने गजेंद्र की नियुक्ति के जरिए केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि इस सरकार के आने के बाद शिक्षा और कला क्षेत्र में कोई ऐशा संस्थान नहीं बचा है जहां विवादास्पद और महत्वहीन लोगों की थोक में नियुक्तियां न हो रही हों। फिल्म सेंसर बोर्ड, ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय संग्रहालय, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, दिल्ली विश्वविद्यालय और आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और भाजपा के एजेंडे के मुफीद लोगों को बैठाया ही जा चुका है।   

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