Advertisement

सीएए का विरोध करने पर मिला 'भारत छोड़ो का नोटिस', पोलैंड के छात्र ने अदालत में दी चुनौती

जाधवपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले पोलैंड के एक छात्र ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के आरोप...
सीएए का विरोध करने पर मिला 'भारत छोड़ो का नोटिस', पोलैंड के छात्र ने अदालत में दी चुनौती

जाधवपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले पोलैंड के एक छात्र ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के आरोप में मिले 'भारत छोड़ो नोटिस' के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। विदेशी छात्र पर सीएए के विरोध में हुई रैली में हिस्सा लेने का आरोप है। छात्र ने अदालत से केंद्र सरकार के आदेश को रोकने और केंद्र को अपना आदेश वापस लेने के लिए निर्देश देने की मांग की है।

जाधवपुर यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री कर रहे विदेशी छात्र कामिल सिदस्यंसकी को विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ), कोलकाता की ओर से 14 फरवरी को "भारत छोड़ो नोटिस" मिला था। जिसमें उसे नोटिस मिलने के 14 दिन के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया था।

छात्र ने हाईकोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में नोटिस को प्रभावी करने से रोकने की प्रार्थना की है। जिसमें, उसे नोटिस मिलने के 14 दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है। नोटिस में कहा गया है कि छात्र कथित रूप से सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल था, जो कि वीजा नियमों का उल्लंघन है. हालांकि, छात्र ने इस आरोप को खारिज किया है।

आरोपों को किया खारिज

छात्र के वकील जयंत मित्रा ने अदालत के समक्ष कहा कि दिसंबर 2019 को कामिल सिदस्यंसकी को जाधवपुर यूनिवर्सिटी के अन्य छात्रों के साथ शहर के न्यू मार्केट इलाके में एक कार्यक्रम में जाने के लिए राजी किया गया था। वकील ने कहा कि उसे जब यह पता चला कि यह कार्यक्रम विभिन्न वर्गों द्वारा आयोजित एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था, तो उसने खुद को छात्रों के समूह से अलग कर लिया और दर्शक की भूमिका में खड़ा हो गया। 

अखबार पर बयानों को गलत तरीके से छापने का आरोप

छात्र का दावा है कि वहां एक व्यक्ति ने उससे कुछ सवाल पूछे और उसकी तस्वीर ली। बाद में उसे पता चला कि वह एक बंगाली दैनिक अखबार का फोटो जर्नलिस्ट है। उस अखबार ने छात्र की तस्वीर और कुछ खबरें प्रकाशित कीं। मित्रा का दावा है कि रिपोर्ट में कुछ बयानों को गलत तरीके से कामिल का बताया गया है।

याचिकाकर्ता ने आदेश को बताया मनमाना

मित्रा ने अदालत में दावा किया यह आदेश मनमाना है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ और संविधान की ओर से दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका के मुताबिक, पोलिश नागरिक ने एफआरआरओ से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की भी गुहार लगाई है क्योंकि विश्वविद्यालय से उसके मास्टर्स का कोर्स पूरा होने में केवल चार महीने का समय बचा है। कामिल ने कहा कि उसने अपनी "गलती" से बहुत कुछ सीखा है और वचन देता है कि दोबारा वह इसे नहीं दोहराएगा।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad