भारत सरकार के थिंक-टैंक नीति आयोग की टांसफॉर्मिंग इंडिया पहल का पहला व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि जनसंख्या के मामले में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश में भी शीर्ष और निचले स्तर के बीच प्रतिभा का काफी बड़ा अंतर है।
सामाजिक गतिशीलता की जरूरत पर जोर देते हुए शनमुगरत्नम ने कहा कि प्रयोगों में देखा गया है कि किसी बच्चे के जीवन-चक्र में जल्द होने वाली शुरूआत का काफी फायदा होता है। उन्होंने कहा, जन्म से पहले के चरण में दखल काफी निर्णायक साबित होता है। इसके बाद स्कूल से पहले के अवसरों की बारी आती है। उन्होंने कहा कि इस बाबत भारत में कुछ अहम योजनाएं हैं। उन्होंने समेकित बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) और आंगनबाड़ी जैसे कार्यक्रमों के नतीजों का भी हवाला दिया। शनमुगरत्नम ने कहा कि ग्राम-स्तर के दखलों से भी चीजें हासिल की जा सकती हैं। जल्द से जल्द जच्चा-बच्चा और फिर स्कूलों तक पहुंच कायम कर इस उद्देश्य को हासिल किया जा सकता है।
सिंगापुर के उप-प्रधानमंत्री ने कहा, आज भारत में स्कूल सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं। ऐसा लंबे समय से हो रहा है। भारत और पूर्वी एशिया के बीच सबसे बड़ा अंतर स्कूलों का है। यह ऐसा संकट है जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता। शनगुगरत्नम ने कहा कि उच्च प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई पूरी करने से पहले ही 43 फीसदी छात्रा-छात्राएं स्कूली पढ़ाई छोड़ देते हैं। प्राथमिक स्कूलों में सात लाख शिक्षकों की कमी है। सिर्फ 53 फीसदी स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय हैं। महज 74 फीसदी छात्रा-छात्राओं को रोजाना पीने का पानी उपलब्ध हो पाता है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि जब भारत ने 2009 में ओईसीडी-पीआईएसए के अध्ययन में हिस्सा लिया तो 74 देशों में से वह 73वें पायदान पर रहा।
एजेंसी