प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ रेडियो आपरेटर्स फार इंडिया की इस दलील पर टिप्पणी नहीं की कि स्वनियंत्रण तंत्र ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और रेडियो चैनलों के लिए असरदार तरीके से काम किया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अर्थ है कि देश में अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई के लिए सरकार एक निकाय बना सकेगी। अबतक समाचार चैनलों के खिलाफ शिकायत ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन में ही दी जाती है यानी जिसके खिलाफ शिकायत उन्हीं का एसोसिएशन इन शिकायतों पर सुनवाई करता था। यह न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के खिलाफ है। गंभीर मामलों में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय न्यूज चैनलों के खिलाफ कार्रवाई करता है मगर ऐसे मामलों में न्यूज चैनल सरकार पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्थिति बदल सकती है।
पीठ ने सू़चना और प्रसारण मंत्रालय से कहा कि वह केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) कानून की धारा 22 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करे और कथित आपत्तिजनक सामग्री को लेकर टेलीविजन तथा रेडियो चैनलों के खिलाफ शिकायतों का निपटारा करने के लिए एक निकाय का गठन करे। जब वकील प्रशांत भूषण और कामिनी जायसवाल ने प्रसारक मीडिया के संचालन के लिए निष्पक्ष नियामक प्राधिकार के गठन की मांग की तो पीठ ने कहा, हम उनसे (केन्द्र) चैनलों की सामग्री पर निगरानी के लिए नहीं कह सकते। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? आपत्तिजनक सामग्री के प्रसारण के बाद आप हमसे या संबंधित प्राधिकार से गुहार लगा सकते हैं। अदालत ने एनजीओ मीडियावाच इंडिया द्वारा दायर जनहित याचिका का निपटारा किया जिसमें मीडिया के लिए नियामक संस्था के गठन का अनुरोध किया गया है। (एजेंसी)