न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति एम एम शांतानगौदार की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा, “पत्नी को दी जाने वाली स्थायी गुजाराभत्ता की राशि पक्षों की हैसियत और पति के गुजाराभत्ता देने की क्षमता के अनुसार होना चाहिए। गुजाराभत्ता हमेशा मामले की तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है और अदालत के लिए सही होगा कि वे विभिन्न कारकों पर गुजाराभत्ता के दावे को देखें।“
क्या था मामला?
पीठ एक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर गौर कर रही थी जिसने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसके द्वारा दिये जाने वाले गुजारेभत्ते को 16 हजार रूपये प्रति माह से बढाकर 23 हजार रूपये प्रति माह कर दिया था। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने गुजाराभत्ता राशि बढाकर सही किया क्योंकि व्यक्ति का असल वेतन करीब 63500 रूपये से बढकर 95000 प्रति माह हो गया है।
अदालत ने कहा कि हालांकि अपीलकर्ता व्यक्ति ने दूसरी शादी कर ली है और उसका दूसरी शादी से एक बच्चा है, न्याय के हित में हम प्रतिवादी पत्नी और बेटे के लिए गुजाराभत्ता राशि 23 हजार रूपये से घटाकर 20 हजार रूपये प्रति माह करने को उचित मानते हैं। सुनवाई करते हुए पति द्वारा तलाकशुदा पत्नी को दी जाने वाली गुजाराभत्ता राशि 23 हजार रूपये से घटाकर 20 हजार रूपये कर दी। अदालत ने इस तथ्य पर विचार किया कि उसने पहली शादी खत्म होने के बाद दूसरी महिला से शादी की है और उसका उससे एक बच्चा भी है।
इस फैसले का किया जिक्र
पीठ ने वर्ष 1970 में शीर्ष अदालत द्वारा पारित एक फैसले का जिक्र करते हुए ये टिप्पणियां कीं। इस फैसले में कहा गया कि पत्नी को गुजाराभत्ता के रूप में राशि देने के लिए पति के असल वेतन का 25 प्रतिशत उचित और न्यायसंगत होगा।