केंद्र सरकार ने फोर्ड पर देश के भीतरी मामलों में हस्तक्षेप करने और सांप्रदायिक सौहार्द को भंग करने का आरोप लगाया है। ग्रीनपीस के बाद केंद्र सरकार की इस कार्यवाई को विरोध में उठी आवाजों को दबाने की कड़ी में देखा जा रहा है।
गुजरात सरकार द्वारा केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर यह कहा गया था कि सबरंग ट्रस्ट और सीटिजनस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने विदेशी मुद्रा नियमन कानून (एफसीआरए) का उल्लंघन किया है और इसकी जांच होनी चाहिए। संस्था से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह जांच संबंधित विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कर ली है और वे संस्था द्वारा मुहैया कराए दस्तावेजों से संतुष्ट है।
सबरंग ट्रस्ट और सीजेपी द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार ६ अप्रैल से ८ अप्रैल तक और ९-११ अप्रैल तक एफसीआरए विभाग की निगरानी इकाई के चार वरिष्ठ अधिकारियों ने दोनों संस्थाओं के तमाम दस्तावेजों, खातों की जांच की। जांच में सीजेपी और सबरंग ट्रस्ट के कार्यकारी पदाधिकारियों में तीस्ता सीतलवाड और जावेद आनंद मौजूद रहे और जांच में सहयोग किया। गुजरात सरकार ने केंद्र सरकार को जो पत्र लिखा उसमें यह कहा गया है कि तीस्ता सीतलवाड और जावेद आनंद विदेश में भारत की छवि खराब कर रहे है।
एक बात साफ दिखाई दे रही है कि तीस्ता के मामले में केंद्र सरकार पूरा शिकंजा कस रही है। अगर सुप्रीम कोर्ट से तीस्ता को राहत न मिली होती तो शायद आज स्थिति ही दूसरी होती। अब सीधे-सीधे तीस्ता सिलवाड को फंड देने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था को निशाने का मकसद साफ है कि ऐसा कोई काम बर्दाश्त नहीं है जो सत्ता के हितों के खिलाफ जाता हो। और फिर तीस्ता ने 2002 गुजरात नरसंहार से जुड़े मामलों में जिस तरह से तत्कालीन गुजरात सरकार को घेरा था, उसे मोदी सरकार के लिए भूलना भी मुश्किल है।