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छत्तीसगढ़ में छात्रों से क्यों हो रहा है रोहित वेमुला जैसा सलूक?

हैदराबाद के बाद अब लगता है कि छत्‍तीसगढ़ के गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय को दूसरे रोहित वेमुला का इंतजार है। फीस बढ़ोतरी के बाद विरोध कर रहे छात्रों को विश्वविद्यालय प्रशासन परेशान कर रहा है। तीन छात्रों को निलंबित कर दिया गया है। ढाई सौ छात्रों पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
छत्तीसगढ़ में छात्रों से क्यों हो रहा है रोहित वेमुला जैसा सलूक?

यूजीसी के द्वारा केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को 10 वर्षों में आय स्वयं बढ़ाने को कहा गया है। इस आदेश के बाद गुरूघासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय ने छात्रों की फीस में पांच से छः गुना वृद्धि कर दी गई, जिसके बाद यहां के छात्रों ने कुलपति के इस फैसले के खिलाफ जमकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है।

रसायन शास्त्र के छात्र जंयत कुमार भारद्वाज का आरोप है कि उनके द्वारा फीस वृद्धि के खिलाफ बोलने की वजह से कुलपति और प्रोफेसर्स द्वारा मारपीट की गई और जाति सूचक गाली दी गई।

इन घटनाओं के जरिए हम यूजीसी के इस आदेश के बाद छात्रों पर पड़ने वाली मार को बखूबी देख सकते हैं।

गुरूघासी दास विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सिद्धार्थ शुक्ला का कहना है कि ‘’यह विश्वविद्यालय महान दलित समाज सुधारक संत गुरू घासीदास के नाम पर बना है,यहां अदिवासी,दलित और गरीब छात्र पढ़ने के लिए आना चाहते हैं ऐसे में उन्हें उत्साहित करने की बजाय विश्वविद्यालय द्वारा फीस बढ़ाकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।’’

28 मार्च को विश्वविद्यालय के वेबसाइट में फीस वृद्धि की सूचना अपलोड होते ही छात्र अपनी शिकायत लेकर कुलपति के पास पहुंचे और इस फैसले को वापस लेने की अपील किए। छात्रों का कहना है कि ‘’हमारे फीस वृध्दि ना करने करने की मांग पर कुलपति प्रो.अंजिला गुप्ता बात करने को राजी नहीं हुई। साथ ही वहां उपस्थित रजिस्ट्रार और अन्य अधिकारी हमें धमकाने लगे।’’

फीस वृध्दि को लेकर प्रो.अंजिला गुप्ता का तर्क है कि ‘’पंन्द्रह सालों में 100 रूपय के सामान की कीमत 1500 रूपय हो गई है, इसलिए थोढ़ी फीस बढ़ानी पड़ेगी अन्यथा यूनिवर्सिटी नहीं चल पाएगी।’’

वहीं विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. बीएन तिवारी कहते हैं कि ‘’फीस बढ़ाने का निर्णय सिर्फ हमारा नहीं है। यूजीसी के आदेश के बाद हमें यह करना पड़ा है। काफी समय से शुल्क में वृद्धि नहीं की गई थी। आसपास दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालय में फीस की लिस्ट देंखें। उसी आधार पर हमनें फैसला किया है. अध्ययनरत छात्रों पर इसका असर नहीं होगा सिर्फ नव प्रवेशी इसके दायरे में आएंगे।’’

जहां एक ओर यूनिवर्सिटी द्वारा वर्तमान छात्रों को यह कहकर समझाया जा रहा है कि फीस वृद्धि का असर उनपर नहीं होगा वहीं छात्रों का यह भी आरोप है कि ‘’कुछ वार्डन और अधिकारियों द्वारा ह़ॉस्टल के कमरों में जा जाकर छात्रों को आंदोलन ना करने की चेतावनी दी गई साथ ही धारा 144 लागू होने की अफवाह फैलाकर डर दिखाया गया।’’

सिद्धार्थ शुक्ला बताते हैं, ‘’जब छात्र परिषद की बात सुनने को कुलपति राजी नहीं हुईं तब हम लोगों ने सैकड़ों छात्रों के साथ शांति प्रिय प्रदर्शन करना शुरू किया,उसके बाद भी कुलपति मैडम पर इसका कोई असर नहीं हुआ बल्कि उन्होंने 250 छात्रों पर एफआईआर दर्ज कर हमें बलवाई करार दे दिया।’’

हालांकि इस पर कुलपति प्रो, अंजिला गुप्ता का कहना है,‘’अगर 31 मार्च को विद्यार्थियों द्वारा अभद्र आचरण नहीं किया जाता तो एफआईआर दर्ज करवाने की नौबत नहीं आती, हम छात्रों का अहित नहीं चाहते, फीस के मामले पर कमेटी गठित कर छात्र हित में निर्णय लिया जाएगा।’’

हालांकि अब कुलपति एवं विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा फीस बढ़ाने के इस फैसले पर पुनर्विचार की बात कही गई है, लेकिन छात्र परिषद अध्यक्ष मेघेन्द्र शर्मा,पूर्व छात्र परिषद अध्यक्ष सिद्धार्थ शुक्ला और नितेश साहू अभी तक निष्कासित हैं, इन छात्रों द्वारा कुलपति पर आरोप लगाया जा रहा है कि इन्हें परीक्षा में आवश्यक उपस्थिति पूरा न कर पाने देने के लिए यह साजिश रची जा रही है। साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि प्रदर्शन में सम्मिलित छात्रों को चिन्हांकित कर उनके घर में नोटिस भेजा गया है जिसमें छात्रों द्वारा किए गए शांतिप्रिय प्रदर्शन को घोर अनुशासनहीनता की श्रेणी में रखा गया है।

छात्रों का कहना है कि ना तो अभी तक फीस वृद्धि को लेकर कोई फैसला आया है बल्कि दुर्भावना वश छात्रों को प्रताड़ित किया जा रहा है, ऐसे में हम फिर से आंदोलन की तैयारी करने के लिए मजबूर हैं।

एक ओर जहां फीस बढ़ोत्तरी को लेकर छात्रों व आम नागरिकों में गुस्सा दिख रहा है वहीं यूजीसी के इस निर्णय को भी कटघरे में खड़ा किया जा रहा है जिसमें यूजीसी ने विश्‍वविद्यालयों को आय के स्रोत बढ़ाने को कहा है। इस पर छात्र नेताओं का कहना है कि यूनिवर्सिटी कोई रियल एस्टेट का कारोबार नहीं बल्कि आदिवासी बाहुल्य इलाके में स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। जहां आम गरीब नागरिक मेहनत और लगन से अध्ययन करते हैं।

वहीं आय के स्रोत बढ़ाने को लेकर विश्वविद्यालय से संबंधित जानकारों का कहना है, ‘’हमारे विश्वविद्यालय में आय के बहुत सारे स्रोत हो सकते हैं केवल फीस वृद्धि ही एक मात्र विकल्प नहीं हो सकता। इतनी सारी ज़मीने हैं, जहां बॉटेनिकल गॉर्डन बना सकते हैं,मीडिया लैब खोलकर उसका समुचित उपयोग कर सकते हैं,तीन तालाब हैं जहां फीशरी से संबंधित काम हो सकता है, रिसर्च को बढ़ावा देकर भी आय का स्रोत निकाला जा सकता है, यूनिवर्सिटी में अवस्थित एक्सलरेटर का उपयोग भी किया जा सकता है लेकिन फीस वृद्धि सबसे सहज और सरल प्रक्रिया मानकर छात्रों को परेशान किया जा रहा है।’’

राज्यसभा सांसद छाया वर्मा इस पूरे मसले के लिए वर्तमान सरकार को जिम्मेदार मानती हैं। उनका कहना है कि ‘’केन्द्र सरकार की शिक्षा नीति गरीबों,आदिवासियों और दलितों के खिलाफ है। वे नहीं चाहते कि हमारे युवा पढ़ लिख पाएं। शायद इन्हें दूसरे रोहित वेमुला का इंतजार है।’’

छत्तीसगढ़ में स्थित इस विश्वविद्यालय में 2015-16 में लगभग 7000 विद्यार्थियों का नाम दर्ज रहा है। जिसमें लगभग तीन हजार छात्राएं रहीं हैं,अनुसूचित जाति विद्यार्थियों की संख्या 1000 रही है, वहीं जनजाति छात्रों की संख्या लगभग 700 रही है,अन्य पिछड़ा वर्ग के लगभग 2000 विद्यार्थी अध्ययनरत रहे हैं, अगर जानकारों की माने तो इन विद्यार्थियों पर फीस वृद्धि का असर साफ तौर पर पड़ेगा इसकी वजह से प्रवेश लेने वाले इन दलित,अनुसूचित और अन्य पिछड़े वर्ग वाले छात्रों समेत छात्राओं की संख्या में कमी आ सकती है।

ऐसे भी छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले छात्रों का अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से कम है। ऐसे में ना केवल विश्वविद्यालय को बल्कि यूजीसी समेत भारत सरकार को शिक्षा नीति पर गंभीरता से विचार करना होगा।  अक्षय दुबे साथी

 

 

 

 

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