प्रचंड के दौरे पर चीन ने शिद्दत से निगाह टिका रखी है। नेपाल पर दबाव बनाए रखने की योजना के तहत चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अक्टूबर के आखिर में दौरा प्रस्तावित है। लेकिन प्रचंड के आगामी भारत दौरे के मद्देनजर नेपाल में जो राजनयिक तैयारियां चल रही हैं, उस कारण जिनपिंग का वहां का दौरा खटाई में पड़ सकता है। ब्रिक्स सम्मेलन के लिए जिनपिंग को अक्टूबर के मध्य में भारत आना है। यहीं से वे बांग्लादेश जाएंगे। बांग्लादेश का उनका दौरा तय माना जा रहा है।
दरअसल, नेपाल के हालात तभी सामान्य हो सकते हैं जब भारत केंद्रीय भूमिका में रहे। कहीं न कहीं चीन भी यह बात मानता है। लेकिन वह नेपाल में हाशिए पर भी नहीं रहना चाहता। नेपाल के साथ चीन ने ट्रांजिट संधि कर रखी है और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में वहां निवेश कर रहा है। दूसरी ओर, भारत पारंपरिक तौर पर नेपाल का राजनीतिक सहभागी रहा है। वहां के राजनीतिज्ञ साझा इतिहास, सरहद, धर्म, परंपरा, इतिहास और जातीय समीकरणों को नकार नहीं सकते।
इसके अलावा नेपाल में भारत अरसे से विकास के कई कार्यक्रम चला रहा है। 1950 की संधि के मुताबिक नेपाल को करोड़ों डॉलर की मदद देता रहता है। नेपालियों के लिए भारत दूसरा घर बना हुआ है। इसके बावजूद नेपाल के कई लोग भारत को दादागिरी की भूमिका में देखते हैं। नेपाल में पिछले दिनों मधेशी आंदोलन के चलते जो ब्लॉकेड हुआ था, उसके लिए वहां के राजनीतिज्ञों ने भारत को जिम्मेदार ठहराया। असल में भारत ने अतीत में दो बार- 1967-68 में और 1980 में आर्थिक और कारोबारी रोक लगाई थी, नेपाल पर दबाव बनाने के लिए। भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत भेक बहादुर थापा मानते हैं कि भूकंप के तुरंत बाद मधेशी आंदोलन के चलते दादागिरी वाली भावना घर कर गई और नेपाल-भारत संबंधों में तनाव आया। इससे चीन को नेपाल में घुसने का मौका मिला।
लेकिन नेपाल अब समझने लगा है कि भारत के साथ नजदीकी ही वहां के लिए बेहतर है। नेपाल में भारत के राजदूत रहे शिव शंकर मुखर्जी कहते हैं, प्रचंड के दौरे में बीते अरसे की गलतफहमियां दूर होने की उम्मीद है। हालांकि, हमें यह गौर करना होगा कि प्रचंड अपने दौरे में यहां क्या कहते हैं और लौटकर क्या करते हैं। नेपाल लौटकर प्रचंड की चुनौती दो बड़े मुद्दे को सुलझाने की होगी- एक, मधेशियों और नेपाल की तराई के लोगों को सटीक प्रतिनिधित्व देने के लिए संविधान में संशोधन और इसके लिए राजनीतिक सहमति बनाना होगी। प्रचंड वहां नेपाली कांग्रेस और सीपीएन (यूएमएल) के समर्थन से सरकार चला रहे हैं। मधेशियों के मुद्दे पर अभी तक राजनीतिक दलों में कोई करार नहीं हुआ है।