अमेरिकी लोकतांत्रिक इतिहास में इस बार का राष्ट्रपति चुनाव बेहद उत्तेजक और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के कारण अंत तक विवादास्पद रहने वाला है। अरबपति ट्रंप तो अभी से अपने समर्थकों को यहां तक कहने लगे हैं कि यदि उनकी पराजय हुई, तो समझ लीजिये मतदान में भारी गड़बड़ी की गई है। टी.वी. की तीन डिबेट में भी वह आप्रवासी लोगों, महिलाओं, मुस्लिम देशों और समुदाय को लेकर नफरत फैलाने वाले बयान दे रहे हैं। ट्रंप टी.वी. डिबेट में अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन पर निजी टिप्पणियां और आरोप फूहड़ ढंग से लगा रहे हैं।
दूसरी तरफ हिलेरी क्लिंटन ने ट्रंप को रूसी गुप्तचर एजेंसियों की कठपुतली होने का गंभीर आरोप लगा रखा है। हिलेरी क्लिंटन का दावा है कि रूस की 17 गुप्तचर एजेंसियों के लोग उनकी पराजय के लिए ट्रंप को हर संभव सहायता एवं झूठी सूचनाएं फैला रहे हैं। हिलेरी तो विकीलिक्स द्वारा भंडाफोड़ की गई सूचनाओं को रूसी षडयंत्र बता रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका का चुनाव संपूर्ण विश्व की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों को प्रभावित करता है। ट्रंप तो जापान, दक्षिण कोरिया जैसे मित्र देशों के साथ संबंधों की कीमत वसूलने या उनके लिए सामरिक व्यवस्था बंद करने तक का इरादा रखते हैं।
वह ओबामा-क्लिंटन राज की जनहितकारी स्वास्थ्य योजनाओं में कटौती एवं बड़ी कारपोरेट कंपनियों पर टैक्स में कमी के पक्षधर हैं। यही कारण है कि आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे सामान्य अमेरिकी नागरिक ट्रंप की अपेक्षा क्लिंटन का साथ देते दिखाई दे रहे हैं। यूं बिल क्लिंटन के सत्ताकाल में उनके निजी चरित्र एवं हिलेरी की आर्थिक गड़बड़ियों को लेकर गंभीर विवाद रहे हैं। इस दृष्टि से जनता के सामने खाई और खंदक जैसी स्थिति है। फिर भी यदि हिलेरी को सफलता मिलती है, तो वह अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होंगी। ट्रंप तो सभाओं और टी.वी. डिबेट में भी लोकतांत्रिक परंपरा और सामान्य शिष्टाचार का पालन नहीं कर रहे हैं। युद्ध की स्थिति में भी कोई वार्ता होने पर दो देशों के नेता या सेनाधिकारी हाथ मिला लेते हैं। यहां तो चुनावी मंच पर भी ट्रंप हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं। बड़े लोकतांत्रिक देश में यह कटुता पतन की परिचायक है।