कौन है मो.आमिर खान
20 फरवरी 1998 को पुरानी दिल्ली के सदर बाजार इलाके का बाशिंदा आमिर खान अपनी दवा लेने घर से बाजार जाने के लिए निकला। रात 9.30 बजे आमिर को सड़क से पुलिस ने बिना कुछ पूछे उठा लिया। घर में उसके अम्मी-अब्बा इंतजार करते रह गए। आमिर के अनुसार उसके अब्बा का पुरानी दिल्ली में थोक में खिलौनों का कारोबार था और अम्मी घर संभालती थी। उस समय आमिर की उम्र 18 साल थी और वह प्राइवेट से 11वीं की पढ़ाई कर रहा था। आमिर पर देशद्रोह तथा विस्फोटक कानून, दंड विधान की धारा 302, 307, 121 के तहत कुल 19 बम धमाके करने के आरोप थे।
कचहरी के चक्कर लगाते-लगाते अब्बू चल बसे और अम्मी निपट अकेली रह गई
आमिर के अनुसार ऐसे झूठे आरोपों में आरोपी की पीड़ा तो सभी को दिखाई देती है लेकिन उसका परिवार उससे कहीं अधिक पीड़ा सहता है। आमिर बताते हैं कि न्यायायिक हिरासत में उनके जाने के बाद बूढ़े पिता के सप्ताह में पांच दिन कोर्ट-कचहरी और वकीलों के यहां गुजरने लगे। ऐसे में कारोबार ठप्प हो गया। अब एक-एक कर घर के जेवर और जायदाद बिकने लगी। आमिर के अनुसार ऐसे बुरे वक्त में रिश्तेदारों और जान पहचान वालों ने भी मुंह मोड़ लिया। क्योंकि उसके परिवार से मेलजोल रखने वालों को आए दिन पुलिस परेशान करने लगी। आमिर को सबसे अधिक मलाल है तो इस बात का कि कोर्ट-कचहरी में भाग-दौड़ करते हुए अगस्त 2001 को उसके बूढ़े पिता की मौत हो गई और उसे इस बात का एक सप्ताह बाद पता लगा। वह उन्हें मिट्टी भी नहीं दे पाया। उसका कहना है ‘अब मां के लिए सबसे मुश्किल दौर शुरू हो गया था क्योंकि वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर्दे में रहीं थीं, घर से बाहर कभी नहीं निकलीं।’ आमिर को बेकसूर साबित करने के लिए कमान उसकी मां ने थामी। वह अकेली औरत वकीलों के चैंबरों में और कोर्ट कचहरियों में बस और ऑटो से जाने लगी। यहां तक कि गाजियाबाद की डासना जेल जाती। आमिर का कहना है कि इन 14 सालों में बाहर की दुनिया से अगर वह जुड़ा रहा तो अपनी मां के जरिये। निपट अकेली बूढ़ी मां भी आखिरकार हाई ब्लड प्रेशर की शिकार हो गई।
गाजियाबाद अदालत के वकीलों ने केस लड़ने से इंकार किया
मुश्किलें अभी खत्म नही हुई थीं। गाजियाबाद जेल में वकीलों ने आमिर का केस लड़ने से इनकार कर दिया। आमिर का कहना है कि वह और उसकी मां चिंता में आ गए कि अब क्या होगा? पैरोकारी कौन करेगा? ऐसे में आमिर ने अपनी मां को लोक स्वातंत्रय संगठन पीयूसीएल से जुड़े वकील एनडी पंचोली के पास भेजा। पंचोली ने आमिर का केस नाम मात्र फीस ले लड़ा। आमिर के अनुसार पंचोली नामी वकील हैं लेकिन वह उसके केस की खातिर सप्ताह में अपने तमाम दूसरे केस छोड़ देते थे। गाजियाबाद जाते थे। इससे पहले भी तिहाड़ जेल में वकील राजेश महाजन, फिरोज खान गाजी, हरियाणा में सतीश त्यागी और राजेश शर्मा ने आमिर की बहुत मदद की। गाजियाबाद में वकील की समस्या सुलझी ही थी कि मां को लकवा मार गया और वह बिस्तर पर आ गईं। जेल की चारदिवारी के अंदर, बाहर की दुनिया से अब आमिर बिल्कुल कट गया। आमिर को लगने लगा कि अब कौन आएगा। वह बाहरी दुनिया से सिर्फ मां के जरिये जुड़ा था।
जेल में किताबें आमिर की दोस्त
आमिर का कहना है कि जेल में पहली दफा जब अब्बू मिलने आए थे तो उन्होंने कहा कि जेल की चारदिवारी में अच्छे लोग कम होते हैं और बुरे ज्यादा इसलिए हमेशा अच्छे लोगों के साथ रहना, न मिलें तो अकेले रहना। तिहाड़ जेल में एक से एक बड़ा नामी आरोपी और अपराधी था लेकिन आमिर अकेला रहता। आमिर ने अब्बू की यह बात गांठ बांध ली थी। उसने किताबों और बागवानी को अपना हमदम बनाया। आमिर के अनुसार उसने जेल में इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से बीपीपी की जो बारहवीं के बराबर होती है। फिर बीए और फूड एंड न्यूट्रिशन कोर्स में दाखिला लिया। लेकिन यह कोर्स एक जेलर की वजह से अधूरे रह गए। आमिर के अनुसार इस दौरान उसने गीता, रामायण और बाइबल जैसे ग्रंथ पढ़े। सकारात्मक सोच रखी। रोजाना स्नान और योग करना, किताब पढ़ना और फूल-पत्तों से दोस्ती रखना, यही आमिर की दिनचर्या थी और उसकी अच्छी सेहत का राज भी। आमिर के अनुसार उसने जेल में व्रत भी किए ठीक वैसे ही जैसे कुछ हिंदू बंदी रोजा करते थे। दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर गांधी जी पर लिखे लेख पर आमिर को राज्य में पहला पुरस्कार भी मिला।
जेल एक विश्वविद्यालय है
आमिर को जेल से रिहा हुए पौने चार साल हो चुके हैं। उसकी शादी हो चुकी है और एक बेटी है। आमिर का कहना है कि इस समय उसे एक अदद नौकरी की बहुत जरूरत है। आमिर के अनुसार वह जैसा पाकसाफ जेल गया था वैसा ही बाहर गया है। उसकी वजह किताबें रहीं, जिन्होंने कभी उसे भटकने नहीं दिया। जेल में आमिर ने गांधी जी को खूब पढ़ा। उसका कहना है कि जब वह जेल गया था तो मोबाइल नहीं था, इंटरनेट नहीं था, चमकती दिल्ली नहीं थी, इसलिए उसकी उम्र तो अभी चार साल की ही है। इन चौदह सालों में पिता और हाल ही में मां दोनों की अदालतों के चक्कर लगाते-लगाते मौत हो गई। सब बिक गया। संगी साथी सभी ने छोड़ दिया। उसका कहना है कि जेल एक ऐसा विश्वविद्यालय है जो बहुत कुछ सिखा देता है। वहां सभी गलत लोग नहीं आते। बेकसूर भी धरे जाते हैं और जेल पहुंच जाते हैं। वहां भी कॉलेज की तरह सीनियर-जूनियर होता है। नए कैदी की रैगिंग होती है। प्रशासनिक अमला बड़े आरोपियों के साथ मिल जेल में खूब राजनीति अंजाम देता है। आमिर का कहना है कि उसका अनुभव है कि कानून व्यवस्था मकड़ी के जाल की तरह है, जिसमें छोटे-मोटे कीट पतंगे तो फंस जाते हैं लेकिन बड़ी दौलतमंद मक्खियां जाल को भेदकर आगे बढ़ जाती हैं। चाहे वह अफजल गुरु हो या शाहिद या फिर शेर सिंह राणा, आमिर का गाहे-बगाहे इनसे वास्ता रहा है। वह कहता है कि जेलों में दलित और मुस्लिम की संख्या ज्यादा है। गरीब, कम पढ़े-लिखे और कमजोर, जेल में भी इन्हीं पर गाज गिरती है।
बेकसूर साबित होने पर सरकार के पास कोई योजना नहीं
आमिर 10 साल तिहाड़ जेल में, साढ़े तीन साल गाजियाबाद की डासना जेल में और एक साल हरियाणा की रोहतक जेल में रहा। जनवरी 2012 को आमिर को कुल 19 मामलों में से 17 मामलों में बरी कर दिया गया। दो मामले लंबित हैं। उसका कहना है कि कश्मीर, उत्तर-पूर्व, छत्तीसगढ़ और पंजाब में सरकार की योजना है कि जो आतंकवादी असले सहित हथियार डालता है सरकार उसका पुनर्वास करेगी लेकिन जो जेल में सड़ रहा है, ट्रायल झेल रहा है या अदालत की मोहर के साथ बेकसूर साबित होकर बाहर आया है उसके लिए सरकार के पास कोई योजना क्यों नहीं है।