नेहरू से इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक कांग्रेस सरकारों के बजट में गांव, गरीब को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने धीरे-धीरे कांग्रेस की समाजवादी योजनाओं पर कारपोरेट सोने का पानी चढ़ाकर शहरों और शहरियों का रंग-रूप बदला। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना अवश्य शुरू की, लेकिन ग्रामीणांे को पर्याप्त सुविधाएं नहीं पहुंचाई। पंचायत राज की महत्ता राजीव गांधी ने स्थापित की। पंचों को अधिकार मिले, लेकिन धन नहीं।
भाजपा सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नए वित्तीय वर्ष 2016-2017 में हर ग्राम पंचायत के लिए 80 लाख रुपये का प्रावधान कर दिया। संसद से पंचायत तक चुने गए प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार पर चिंता करने वाले इस उदारता के दुरूपयोग की आशंका व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन गड़बड़ी की आशंका में खजाने पर ताले के साथ जंग लगाकर मुसीबतें मोल लेना भी ठीक नहीं हो सकता। पंचायत सहित संपूर्ण ग्रामीण विकास पर लगभग दो लाख करोड़ रुपयों का प्रावधान देश की दशा-दिशा बदलने में सहायक हो सकता है। इसी तरह दस हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण एवं स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार तथा बीमा योजनाओं से शहरी क्षेत्रों में भी समुचित लाभ हो सकता है।
सत्ता में अाने के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में नाममात्र की बढ़ाेतरी हुई। इसे राजनीतिक दबाव कहा जाए या जनता में बढ़ रही बेचैनी, सरकार ने अपनी प्राथमिकता बदली है। यूं कारपोरेट क्षेत्र को भी नाराज नहीं किया गया है और संतुलन बनाकर कारोबारियों को अपना काम-धंधा बढ़ाने के लिए वित्तीय व्यवस्था, छूट का प्रावधान किया। प्रतिपक्ष को आलोचना का अधिकार है और निश्चित रूप से कमियां-गड़बड़ियां एक हद तक बनी रह सकती है। लोकतंत्र में यह स्वाभाविक है। मजेदार बात यह है कि गांधी-नेहरू नाम की योजनाओं की आलोचना करने वाली भाजपा सरकार ने नई योजनाओं को अपने शीर्ष नेताओं-दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री योजनाओं जैसे नाम दे दिए।
बहरहाल, नाम से अधिक महत्व क्रियान्वयन को दिया जाना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, सिंचाई, बिजली, मकान, अस्पताल, मोबाइल-इंटरनेट सुविधाओं के लिए राज्य सरकारों और स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं पर निर्भर रहना होगा। विभिन्न प्रदेशों में भाजपा के अलावा कांग्रेस, जनता दल (यू), तृणमूल, कम्युनिस्ट, क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं। इसलिए बजट की अच्छी योजनाओं के लिए सबको साथ रखने की कोशिश भी केंद्र सरकार को करनी होगी। इसी तरह नौकरी-पेशा मध्यमवर्ग और शहरी लोगों को महंगाई से राहत एवं बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराने वाले कार्यक्रम क्रियान्वित करने होंगे। बजट दस्तावेज का ब्रीफकेस सुंदर है, लेकिन खजाना जितना बड़ा, चुनौतियां और अपेक्षाएं इससे अधिक रहने वाली हैं। बजट के नगाड़े के साथ घर-घर में बजने वाली बांसुरियों से निकलने वाली ध्वनि भी सुनते रहना होगा।