पिछले कुछ सप्ताह से बैंकों के अधिकारी, कानूनी विशेषज्ञ, सरकारी एजेंसियां और मीडिया के माध्यम से आशंका व्यक्त कर रहे थे कि बैंकों का कर्ज लौटाए बिना विजय माल्या भाग जाएंगे। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक रूप से यही दावा किया कि वह माल्या और ऐसे 20 अन्य लोगों-कंपनियों से कर्ज वसूली के लिए कठोर कदम उठा रही है। यदि सरकार गंभीर थी, तो क्या माल्या किसी भारतीय हवाई अड्डे से भाग सकता था?
उसके भागने के एक सप्ताह बाद सरकार अदालत में हाथ झाड़कर सूचित करती है कि किंग तो परदेस उड़ गए। मतलब साफ है कि माल्या जैसे लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता-व्यवस्था का प्रश्रय मिलता रहा। उनके राजनीतिक दबाव और बैंकों के कुछ प्रभावशाली अधिकारियों के सहारे सात हजार करोड़ रुपये माल्या की कंपनी को दिए जाते रहे और ‘दीन-हीन’ हालत बताकर माल्या कर्ज ही नहीं ब्याज तक हजम करते रहे।
बैंकों और सरकार ने इतने वर्षों के दौरान वैधानिक तरीके से यह सुनिश्चित नहीं किया कि माल्या की सोना उगल रही शराब तथा अन्य कंपनियों से यह रकम वसूल करवा ले। विजय माल्या की हाल तक की रंगीन पार्टियों में देश के जाने माने राजनेता, अधिकारी शामिल होते रहे। इसलिए यह कहावत चरितार्थ हो रही है कि ‘चोर से कहाे चोरी करे और सरकार से कहो जागते रहना।’ यहां तक सरकार का एक हिस्सा चोरी करवाता रहा, फिर कार्रवाई की बात करता रहा और इस बीच ‘आव्रजन व्यवस्था’ के रहते देश से भागने दिया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या को नोटिस जारी कराया है। लेकिन ब्रिटिश कानूनी व्यवस्था में इतने पेंच हैं कि भारत सरकार की एजेंसियों को माल्या के प्रत्यार्पण में अधिकाधिक अड़चनें आ सकती हैं। यही नहीं विजय माल्या तो अपने निजी आधुनिक जहाज में रातें रंगीन करते हुए महीनों तक समुद्री मार्ग से सैर-सपाटा करते रह सकते हैं। सो, कानून के जाल फैलाने के परिणाम की प्रतीक्षा सबको करनी होगी।