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चर्चाः उठ रहा पर्दा काले खातों का | आलोक मेहता

भारतीय नेता यूं मीडिया को हर बात पर कोसते रहते हैं। लेकिन उन्हें कभी-कभी ईमानदार और साहसपूर्ण पत्रकारिता की तारीफ भी कर देनी चाहिए। आखिरकार बोफोर्स, टू जी स्पेक्ट्रम, कोयला घोटाले और विदेश में जमा काले धन और बैंक खातों का पर्दाफाश भारत के खोजी पत्रकारों ने ही किया है।
चर्चाः उठ रहा पर्दा काले खातों का | आलोक मेहता

‘पनामा पेपर्स’ के रूप में आज हुए रहस्योद्घाटन में भारत की नामी हस्तियों के नाम काले खातों के साथ जुड़े हुए सामने आ गए। अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर भारत के पत्रकारों की साख है, तभी तो चुनिन्दा पत्रकारों के समूह में उन्हें स्‍थान मिला। भारत के नामी टी.वी. संपादक प्रणव राय ने पिछले दिनों दावा किया था कि दुनिया में सर्वाधिक स्वतंत्रता भारतीय पत्रकारों को है। यह बात अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े संपादक और प्रबंधक मानते हैं। ब्रिटेन में बड़े स्टिंग आपरेशन में फंसे एक बड़े अखबार को मीडिया सम्राट रूपर्ट मुर्डोक ने मजबूरी में बंद किया।

भारत में खोजी पत्रकारिता करने वाले इंडियन एक्सप्रेस, हिंदू और आउटलुक समूह जैसे प्रकाशन संस्‍थान निरंतर विश्वसनीय तथा खोजी पत्रकारिता करते रहे हैं। यही नहीं दिल्ली, मुंबई से अधिक ईमानदार पत्रकार बिहार, बंगाल, केरल, असम से कश्मीर तक हैं। मीडिया का विस्तार होने के साथ गड़बड़ करने वाले या भ्रष्‍ट कहे जाने वाले पत्रकार भी सामने आए हैं। लेकिन उनकी संख्या सीमित है। हां, मीडिया की छवि उन लोगों की वजह से खराब हुई है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, आंध्र-तेलंगाना में उग्रवादियों अथवा पुलिस की धमकियों के बावजूद पचासों पत्रकार अपना दायित्व साहस के साथ निभा रहे हैं। जेल और मौत के खतरों के बावजूद कलम और कैमरे चल रहे हैं। इसलिए उन्हें कठघरे में खड़ा करने के बजाय प्रोत्साहन देने से भारत का लोकतंत्र अधिक गौरवशाली होगा।

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