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चर्चाः अवैध धार्मिक स्‍थलों पर हथौड़ा | आलोक मेहता

अदालतें सचमुच इन दिनों कमाल कर रही हैं। सत्तारूढ़ या प्रतिपक्ष के नेताओं को भले ही अदालती न्याय से कष्ट हो रहा है, लेकिन जनता का विश्वास बढ़ता जा रहा है। अब हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई के बाद सख्त आदेश दिया है कि उ.प्र. में सड़कों के किनारे, चौराहे अथवा हाईवे या गलियों में बने अवैध धार्मिक स्‍थलों को तोड़ दिया जाए।
चर्चाः अवैध धार्मिक स्‍थलों पर हथौड़ा | आलोक मेहता

प्रदेश में 2011 के बाद बने ऐसे सभी अतिक्रमण वाले कथित धार्मिक स्‍थलों को तोड़ने की कार्रवाई सरकार और स्‍थानीय प्रशासन को करनी होगी। प्रदेश के मुख्य सचिव को इस आदेश पर अमल की रिपोर्ट अदालत को सौंपनी होगी। वैसे अवैध धार्मिक स्‍थलों के निर्माण की स्थिति अकेले उत्तर प्रदेश में नहीं है। राजधानी दिल्ली से लेकर विभिन्न राज्यों में धर्म के नाम पर कुछ लोग रातों-रात जमीन पर कब्जा करके धीरे-धीरे दीवारें खड़ी कर लेते हैं। कहीं-कहीं प्राचीन प्रतिमा की कहानी गढ़कर लोगों को प्रभावित कर दिया जाता है। कहीं पुराने धार्मिक केंद्र के इर्द-गिर्द की जमीन पर कब्जा कर लिया जाता है। कुछ वर्ष पहले जबलपुर के एक युवा जिला कलेक्टर ने लगभग ढाई सौ अवैध धार्मिक स्‍थलों को तुड़वा दिया। उस समय उन्हें जनता का व्यापक समर्थन मिला। इसलिए यह धारणा गलत है कि धार्मिक स्‍थलों के नाम पर अवैध निर्माण या गैर कानूनी गतिविधियां संचालित करने पर कार्रवाई का विरोध हो सकता है। समस्या तब आती है जब राजनीतिक दल या उससे जुड़े संगठन अवैध निर्माण हटाने पर सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा कर देते हैं। उत्तर प्रदेश और पंजाब में आने वाले विधान सभा चुनाव से पहले ही कुछ संगठन और नेता सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने की कोशिश करने लगे हैं। राजनेताओं के संरक्षण के कारण पुलिस प्रशासन कुछ धार्मिक केंद्रों में अवैध हथियारों के इकट्ठे किए जाने पर भी कार्रवाई नहीं कर पाता। अवैध हथियार दंगों में संपूर्ण व्यवस्‍था और समाज के लिए घातक सिद्ध होते हैं। धार्मिक स्‍थल उपासना, शांति और सौहार्द के लिए होते हैं। अंधविश्वास, पाखंड और अवैध धंधों के लिए किसी धार्मिक केंद्र का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसलिए उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर में अवैध धार्मिक स्‍थलों को तोड़ने एवं ऐसे केंद्रों की अवैध गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

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