दुनिया के किसी मुल्क में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद भविष्य निधि पर ऐसा कर नहीं लगता। लोकतांत्रिक देशों में तो न्यूनतम पेंशन सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के तहत होती है। भारत सरकार ने धीरे-धीरे ‘समाजवादी’ व्यवस्था को छोड़कर उदारवादी आर्थिक नीतियों को अपनाया है। लेकिन उदारवादी व्यवस्थाओं में भी फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, जापान जैसे देशों में वेतनभोगी लोगों के हितों का पूरा सरंक्षण होता है। संघ-भाजपा से जुड़े भारतीय मजदूर संघ मनमोहन सरकार की नीतियों के विरुद्ध वामपंथी संगठनों तक के साथ रहकर आंदोलन करने लगती थी। आज भी भविष्य निधि के ब्याज पर टैक्स की घोषणा का भारतीय मजदूर संघ ने विरोध किया है। भारतीय किसान संघ ने तो फूड प्रोसेसिंग में 100 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश के प्रावधान का कड़ा विरोध किया है, क्योंकि उसे आशंका है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसानों की कड़ी मेहनत से पैदा किए गए फलों के लिए पहले-संभवतः ठीक दाम दे दे, लेकिन धीरे-धीरे शोषण और लूट के तरीके अपनाएंगी।
श्रमिक नेता हो या आर्थिक विशेषज्ञ – भारतीय श्रमिक वर्ग के हितों की अपेक्षा-शोषण को अनुचित मानते हैं। पहले अकादमी पर टैक्स, फिर बचत पर टैक्स, फिर खर्च पर सेवा कर और बाजार में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में बढ़ोतरी से मध्यम वर्ग निरंतर परेशान एवं उत्तेजित है। गांवों के लिए भी बजट प्रावधानों के अमल में साथ के कस्बों और शहरों में रहने वाले-लोगों का योगदान रहेगा। समाज के सर्वांगीण विकास के लिए केवल सबसे निम्न आयवर्ग और धनपतियों को संतुष्ट करने से व्यवस्था नहीं चलती। सीढ़ी को बीच से काटकर कोई ऊंचाई पर नहीं पहुंच सकता। इसलिए समय रहते सरकार को अपनी कैंची के बजाय राहत देने वाले पंखे का सहारा लेना चाहिए।