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न्याय के लिए नई क्रांति का बिगुल

बिगुल बज गया- आजादी की वर्षगांठ पर। न्याय के लिए एक नई क्रांति का शंखनाद दूरदराज के किसी मजदूर, किसान ने नहीं देश के सर्वोच्च न्यायाधीश ने किया। 70 वर्षों में पहली बार देश के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर ने कोर्ट परिसर में तिरंगा ध्वज फहराने के तत्काल बाद केंद्र सरकार से गुहार लगाई कि देश में न्याय की रक्षा के लिए न्यायाधीशों की नियुक्तियों में बनी सरकारी रुकावटें दूर की जाएं।
न्याय के लिए नई क्रांति का बिगुल

न्यायमूर्ति श्री ठाकुर ने स्पष्ट शब्दों में यहां तक माना कि ‘आजादी से पहले ब्रिटिश राज में सारे जुल्मों के बावजूद अदालतों में लगभग 10 साल में फैसले हो जाते थे। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में अदालतों में बड़ी संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्तियां नहीं होने से अदालतों में विचाराधीन मामलों में एक सौ वर्ष लग सकते हैं।’ इस कार्यक्रम में देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी उपस्‍थित थे। न्यायाधीशों को इस बात का दुःख है कि लाल किले की प्राचीर से करीब 100 मिनट के भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘न्याय’ के लिए एक शब्द भी नहीं बोला। यह पहला अवसर नहीं है, जबकि न्यायपालिका के साथ सरकार के टकरावपूर्ण रवैये एवं अदालतों में राजनीतिक हस्तक्षेप से न्यायधीशों की नियुक्ति का मुद्दा उजागर हुआ है। वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश ही नहीं विभिन्न सामाजिक-कानूनी संगठनों की मान्यता है कि न्यायपालिका की निष्पक्षता, ईमानदारी एवं श्रेष्ठ न्याय के लिए अदालतों एवं न्यायाधीशों के कामकाज-नियु‌क्त्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। लेकिन वर्तमान सरकार ही नहीं कुछ राजनीतिक दल और उनके नेता सरकार-संसद का स्‍थान न्यायालय और न्यायाधीशों से ऊपर रखना चाहते हैं। उनका तर्क है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार न्यायाधीशों के ही सलाहकार मंडल के हाथों में होने पर पक्षपात एवं अनियमितता की संभावना बनी रह सकती है। यह आरोप इक्का-दुक्का मामलों में ठीक होने पर उन नियुक्तियों को चुनौती देने, गंभीर भ्रष्टाचार होने पर कानूनी कार्रवाई एवं संसद में निंदा प्रस्ताव ही नहीं निलंबन-बर्खास्त करने की अनुशंसा का अधिकार आज भी उपलब्‍ध है। पिछले दशकों में जस्टिस रामस्वामी के विरुद्ध संसद में मामला चला था। उनकी पैरवी करने वाले कपिल सिब्बल बाद में स्वयं कानून मंत्री तक बन गए। इस दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा उठाए गए गंभीर मुद्दे पर सरकार को अपनी लालफीताशाही की गांठ काटकर न्याय के मंदिरों की रक्षा के ‌लिए निष्पक्ष-ईमानदार न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए न्यायपालिका की सिफारिशों को तत्काल स्वीकार करना चाहिए। यही नहीं न्यायाधीशों को अधिकतम वेतन-सुविधाओं के साथ अदालती परिसर को सुविधाजनक बनाने के लिए बड़े बजट का प्रावधान करना चाहिए। आखिरकार टूजी स्पेक्ट्रम जैसे बड़े घोटाले में राजनेताओं सहित अधिकारियों को अदालती आदेश से जेल भेजा गया एवं इसी निष्पक्ष न्याय व्यवस्‍था के कारण वर्तमान राजनेता सत्ता में आए हैं। न्यायाधीशों के लिए न्याय में देरी लोकतंत्र का सबसे बड़ा अपराध ही माना जाएगा।

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