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शिक्षा परिसर में घृणित हिंसा

छात्र राजनीति में आंदोलन, हड़ताल, हिंसा की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में हुए टकराव में भयावह शब्दों के साथ घृणित हिंसा बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
शिक्षा परिसर में घृणित हिंसा

शैक्षणिक संस्‍थानों में गंभीर विवादास्पद मुद्दों पर छात्रों का वाद-विवाद प्रतियोगिता, अतिथि वक्ताओं को आमंत्रित कर गर्मागर्म बहस, समर्थन-विरोध की तालियां या अहसमतियों की आवाज, आरोप-प्रत्यारोप को भी देखा-झेला जाता रहा है। लेकिन पिछले वर्ष जहवाहरलाल नेहरू विश्यवविद्यालय में छात्रों की एक उत्तेजक सभा के विवादों के साथ राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रवाद के मुद्दों पर छात्र राजनीति को नया मोड़ मिल गया। रामजस कॉलेज में प्रस्तावित संगोष्ठी उसी विवाद का हिस्सा बन गई। यदि विरोध नहीं होता, तो संभवतः एक विभाग की इस गोष्ठी में सौ-पचास छात्रों के बीच पक्ष-विपक्ष अपने तर्क रख देता। लेकिन कड़े विरोध ने इसे अभिव्यक्ति के अधिकार के साथ संघर्ष में बदल दिया। समर्थन-विरोध में पुलिस के साथ लिबरल, कम्युनिस्ट, संघ-भाजपा, कांग्रेस विचारों वाले समूहों के बीच हिंसक संघर्ष एवं पुलिस की आधी-अधूरी कार्रवाई परिसर को कलंकित करने वाली है। इस कांड में करीब बीस वर्षीय छात्रा को बलात्कार एवं जान से मारने की धमकियां मिलीं। भाजपा के एक माननीय सांसद महोदय ने तो छात्रा की तुलना कुख्यात आतंकवादी माफिया दाऊद इब्राहीम से ही कर दी। राष्ट्रद्रोही ओर आतंकवादी शब्द कानूनी तराजू पर भी सबसे भारी होते हैं। जेएनयू में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना को लेकर आज तक अदालत में ‘राष्ट्रद्रोह’ का कोई प्रकरण साबित नहीं हो सका है। वैसे भी ‌सरकार किसी की भी हो, राष्ट्रद्रोही और आतंकवादी की पहचान होने पर किसी भी व्यक्ति को कुछ मिनटों के लिए खुला नहीं रखा जा सकता। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का नाम और काम बहुत हद तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आशीर्वाद से जुड़ा माना जाता है। कांग्रेस, कम्युनिस्ट, समाजवादी या माओवादी कहलाने वालों की गतिविधियों पर विद्यार्थी परिषद, भाजपा सदैव आपत्तियों के साथ आरोप लगाती रही है। कई विश्वविद्यालयों में उनका प्रभाव कम भी हुआ है। लेकिन सत्ता की राजनीति में विद्यार्थी परिषद या भाजपा के नेता भारतीय संस्कारों को पूरी तरह भुलाकर हिंसा के साथ असहमति या विरोध को राष्ट्र विरोधी कहने लगेंगे? लोकतंत्र का पहला पाठ शैक्षणिक परिसर से ही मिलता रहा है। इसलिये तात्कालिक हित-अहित की अपेक्षा स्वस्‍थ परंपरा पर सबको सोचना है।

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