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किसान आंदोलन: अब किसानों की रणनीति में बॉर्डर नहीं, महापंचायत से समर्थन जुटाने की कवायद

 इसे दिल्ली हिंसा का असर कहें या सियासी गणित, कृषि कानूनों के खिलाफ अगुवाई छिनने के बाद पंजाब के 32...
किसान आंदोलन: अब किसानों की रणनीति में बॉर्डर नहीं, महापंचायत से समर्थन जुटाने की कवायद

 इसे दिल्ली हिंसा का असर कहें या सियासी गणित, कृषि कानूनों के खिलाफ अगुवाई छिनने के बाद पंजाब के 32 किसान संगठन नए सिरे से किसान महापंचायतों के जरिए आंदोलन के प्रति समर्थन जुटाने लगे हैं। दो महीने तक पंजाब के किसानों ने ही दिल्ली के सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन को शिखर तक पहुंचाया। किसान आंदोलन के साथ शुरू से एक बात यह भी जुड़ी है कि यह पंजाब के ही किसानों का आंदोलन है। हालांकि इसमें हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से किसान जुड़े,लेकिन कहा जा रहा कि उसमें भी ज्यादातर सिख किसान ही थे। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर हुई िहंसक घटनाओं को सिखों और उनके धार्मिक ध्वज निशान साहिब के साथ जोड़े जाने के बाद आंदोलन की कमान राकेश टिकैत के हाथ जाने से पंजाब के किसान खुश नहीं हैं। हरियाणा में राकेश टिकेत की किसान महापंचायतों के तोड़ में पंजाब के किसानों नेताओं ने आंदोलन को नई गति देने के लिए दिल्ली की सीमाओं से इतर राज्य में अपनी महापंचायतें शुरु कर दी हैं। दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन में एक रहे पंजाब व हरियाणा के किसान महापंचायतांे में बंट गए हैं। यही वजह है कि सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर पहले की तुलना में अब पंजाब के किसानांे की हाजिरी लगातार गिर रही है।

    पंजाब के किसानों को डर है कि कहीं हरियाणा की तर्ज पर टिकेत पंजाब में भी ताबड़तोड़ किसान महापंचायतांे के जरिए उनके आंदोलन को अगवा न कर लें। हरियाणा के जींद,भिवानी,रोहतक,करनाल और कुरुक्षेत्र में किसान महापंचायतों के बाद टिकेत की योजना पंजाब में भी किसान महापंचायत करने की है,इससे पहले टिकेत पंजाब की घरती पर टिकते यहां के किसान नेताओं ने अपनी ही महापंचायतें शुरु कर दी है। हरियाणा के जींद के कंडेला में तीन फरवरी को पहली किसान महापंचायत  में राकेश टिकेत और गुरनाम सिंह चढूनी के साथ मंच साझा करने वाले भारतीय किसान यूनियन(राजेवाल)के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने पंजाब के किसान नेता मनजीत धनेर, कुलवंत संधू, जोगिन्द्र सिंह उगराहां के साथ मंडी जगराओं से संयुक्त किसान मौर्चा महापंचायत की शुरुआत की है। 11 फरवरी को हुइ इस पहली किसान महापंचायत में शामिल हुए हजारों किसान, मजदूरों, आढ़तियों, महिलाओं, बुजुर्गों तथा विभिन्न समर्थक संगठनों,बार एसोसिएशन सदस्यों और बुद्धिजीवियों के जरिए किसान नेताओं ने शक्ति प्रदर्शन किया।

   कृषि कानून के विरोध में अगस्त 2020 से पंजाब की रेलवे ट्रैक्स और टोल प्लाजा पर धरने के बाद दिल्ली की सीमाओं को घेरने वाले पंजाब के किसान नेताओं की आंदोलन की अगुवाई को लेकर बरकार बढ़त 26 जनवरी को दिल्ली के लाल किले पर हुड़दंग के बाद कमजोर पड़ने लगी थी। सिंघु और टिकरी बॉर्डर से पंजाब के कई किसान वापस अपने गांवों को लौट आए हैं। टिकरी पर लंगर और अन्य सेवाओं के लिए आने वाले किसानों की संख्या भी घटने लगी है। आंदोलन पंजाब के हाथों से फिसल कर पश्चिमी यूपी के किसानों के हाथ जाने के डर से पंजाब के 32 किसान संगठनों ने स्थानीय निकाय,पंचायत चुनाव और अगले साल विधानसभा चुनाव पंजाब में ही किसान महापंचायतों के जरिए शक्ति पदर्शन की रणनीति बनाई है। तीनांे कृषि कानून केंद्र सरकार ने वापस नहीं लिए तो कोई बड़ी बात नहीं कि पंजाब के किसान फरवरी 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव तक शक्ति पदर्शन के लिए धरनों पर बैठे रहें।

      किसानांे के इस रुख को भांपते हुए सत्तारुढ़ कांग्रेस विधानसभा के आगामी बजट सत्र में केंद्र के कृषि कानूनों के तोड़ में अपने कृषि बिल दूसरी बार विधानसभा में ला रही है। अक्टूबर 2020 में विधानसभा मंे कैप्टन अमरिदंर सरकार द्वारा लाए गए बिल पारित करने को राज्यपाल ने राष्ट्रपति को नहीं भेजे थे। विधानसभा में दूसरी बार कृषि बिल लाए जाने पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर सिंह का कहना है, “हम विधानसभा में दूसरी बार बिल इसलिए लाने जा रहे हैं कि यदि दो बार विधानसभा में बिल पारित होने के बाद इन्हें राज्यपाल को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजना सैंवेधानिक तौर पर अनिवार्य होगा। राज्य को सैंवेधानिक अधिकार है कि वह धारा 254(ii) के तहत केंद्र के कानून में संशोधन कर सकता है”। केंद्र के तीन कृषि कानूनाें की टक्कर में राज्य के कृषि कानून लाने की कवायद के अलावा कैप्टन सरकार ने आंदोलन दौरान जान गंवाने वाले पंजाब के 88 किसान परिवारों में प्रत्येक को पांच लाख रुपए मुआवजा और सरकारी नौकरी का एलान किया है। इन परिवारों की पूरी कर्ज माफी भी विचाराधीन है। दिल्ली की जेलों में बंद आंदोलकारी किसानों की पैरवी के लिए 40 सरकारी वकील नियुक्त किए गए हैं। आंदोलनरत किसानों के खिलाफ पंजाब पुलिस द्वारा दर्ज किए गए 170 मामले सरकार ने रद्द कराए हैं। इधर केंद्र के कृषि कानूनों के तोड़ में पंजाब के प्रस्तावित कृषि बिलांे पर सवाल उठाते हुए पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा ने आउटलुक से बातचीत में कहा “क्या कांग्रेस सरकार द्वारा लाए जाने वाले कानून किसानों को एमएसपी पर फसल खरीद की गारंटी देंगे”? शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने इसे कैप्टन का सियासी ड्रॉमा बताते हुए कहा, “केंद्र के कृषि कानूनों के जवाब में राज्य के कृषि कानूनांे की वैधता पर अक्टूबर 2020 से लेकर अब तक अमरिंदर सिंह ने क्या किया”?   

    उधर दिल्ली की सीमाओं से हटकर अब राज्य में ही किसान महापंचायतांे के जरिए आंदोलन को गति देने के सवाल पर    आउटलुक से बातचीत में भारतीय किसान यूनियन(राजेवाल)के अध्यक्ष बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा, “अब पंजाब, हरियाणा व यूपी के लोगों का खेती के काले कानूनों के खिलाफ गुस्सा महापंचायत का रूप धारण कर गया है। जगंराओं में हुई पहली महापंचायत में जुटी भीड़ को विजय का प्रतीक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह भीड़ अब दिल्ली बार्डरों पर पहुंचनी चाहिए ताकि हमारा संघर्ष तेज हो सके”। उन्होंने बताया कि 26 जनवरी को जिन किसानों की दिल्ली में गिरफ्तारी हुई है उन्हें छुड़वाने के लिए वकीलों की एक कमेटी गठित की गई जो इन किसानों के केस मुफ्त लड़ेगी। जेल में बंद नौजवानों के खाने-पीने के सामान का बिल संयुक्त किसान मोर्चा कमेटी दे रही है।

   महापंचायतांे के जरिए किसान आंदोलन को गति देने की रणनीति को सियासी तौर पर सही ठहराते हुए सेंटर फाॅर रिसर्च एंड इंडस्ट्रियल डवलपमेंट(क्रिड)के राजनीतिक िवश्लेषक आरएस घुम्मण का कहना है, “आंदोलन यूपी के किसान नेताओं के हाथों जाने से केंद्र पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि पंजाब के साथ ही यूपी में भी विधानसभा चुनाव हैं। उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं, जबकि पंजाब में सिर्फ 13 हैं। पंजाब में न ज्यादा सीटें हैं, न ही यहां भाजपा राजनीतिक तौर पर आत्मनिभर्र है यही वजह है कि अगर उत्तर प्रदेश इस आंदोलन में पूरी तरह शामिल हुआ तो केंद्र पर ज्यादा दबाव पड़ेगा। इसी के चलते राकेश टिकैत की किसान महापंचायतों की रणनीति बनाई गई है। पंजाब में अपनी चार दशक की सियासत में  शिरोमणी अकाली दल की पिछलग्गू रही भाजपा का स्थानीय निकाय चुनाव मेंं पूरी तरह से सफाया इस बात का संकेत  है कि  2022 के विधानसभा चुनाव पहली दफा अकेले लड़ने का दम भरने वाली भाजपा को  किसानों के भारी विरोध के बीच पंजाब से कोई खास उम्मीद भी नहीं हैं।

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