हड़ताल का देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। निजी और असंगठित क्षेत्र का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। वाणिज्यिक संगठनों का अनुमान है कि बैंकिंग, औद्योगिक, वाणिज्यिक सेवाओं के क्षेत्र में लगभग 26 हजार करोड़ रुपए चपत इस एक दिन की देशव्यापी हड़ताल से लगी है। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के अनुसार, प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर नुकसान का आंकड़ा लगभग 26,250 करोड़ रुपए बैठता है। मजदूर संगठनों ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने, मूल्यवृद्धि नियंत्रण, बैंकों के एकीकरण और निजीकरण, रक्षा और रेलवे में एफडीआई समेत एक दर्जन मुद्दों पर हड़ताल की अपील की थी।
भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ ने इस हड़ताल से खुद को अलग रखा। माकपा के सीटू समेत वाममोर्चा समर्थित तमाम मजदूर संगठन, कांग्रेस समर्थित इंटक को मिलाकर कुल 10 केंद्रीय मजदूर संगठनों ने हड़ताल का आह्वान किया था। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में भी हड़ताल का असर दिखा है। मजदूर संगठनों के सदस्य बताए जा रहे लगभग 15 करोड़ मजदूरों, कर्मचारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया। राष्ट्रीयकृत बैंक पूरी तरह बंद रहे। हरियाणा के गुड़गांव और फरीदाबाद के औद्योगिक इलाकों में हड़ताल रही। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 90 फीसद कर्मचारी काम पर नहीं पहुंचे।
केरल में हड़ताल के चलते इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के प्रबंधन ने छुट्टी घोषित कर दी। इसरो के छह हजार कर्मचारी काम पर नहीं पहुंचे। कोच्ची के आईटी हब में भी काम नहीं हुआ। त्रिपुरा में ट्रेनें ठप रहीं, रास्ते सुनसान रहे। सीमावर्ती इलाकों में बांग्लादेश से होकर कारोबार ठप रहा। कर्नाटक में बंगलुरू विश्वविद्यालय की परीक्षाओं की तारीख आगे खिसका दी गई। तमिलनाडु में भेल का स्टील प्लांट बंग रहा। हिमाचल प्रदेश में होटल, पनबिजली परियोजनाएं, बीमा और बीएसएनएल सेवाओं पर खासा असर पड़ा।
बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने परिवहन सेवाएं सामान्य रखने का ऐलान किया था। सड़कों पर सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। हल्दिया और दुर्गापुर शिल्पांचल में कामकाज हुआ। हालांकि, राजधानी कोलकाता समेत कई इलाकों से बंद समर्थकों के साथ पुलिस के संघर्ष की खबरें आईं। कूचबिहार, मालदह, सिलिगुड़ी, मुर्शिदाबाद, मध्यमग्राम, उलूबेड़िया समेत कई इलाकों में हंगामा हुआ।
माकपा समर्थित मजदूर संगठन सीटू के महासचिव तपन दास ने एक बयान जारी कर कहा कि मजदूरों के न्यूनतम वेतन को लेकर सरकार गलतबयानी कर रही है। 42 फीसद बढ़ोतरी की बात की जा रही है, लेकिन हर महीने 18000 रुपए की तय की गई रकम से भी कम बैठती है यह आमदनी। दिहाड़ी की मौजूदा दर के हिसाब से आमदनी 15 हजार रुपए से भी कम की बैठती है।