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दलितों पर राजनीति का नया अध्याय

उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभाओं के चुनाव अभियान से छः महीने पहले दलितों पर राजनीति का नया अध्याय शुरू हो गया है। यदि राजनीति के रणनीतिकारों पर विश्वास किया जाए, तो यह खतरनाक संभावना भी सामने आती है कि भाजपा नेता दयाशंकर सिंह ने बसपा नेत्री सुश्री मायावती के विरुद्ध अभद्र एवं गैरकानूनी टिप्पणी कर जातिगत टकराव बढ़ाकर राजनीतिक चूल्हा गर्म करने की कोशिश की है।
दलितों पर राजनीति का नया अध्याय

सांप्रदायिक मुद्दों पर तनाव से धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण, जातिगत टकराव से जातीय आधार पर सामूहिक मतदान एवं सही-गलत दावों, दुष्प्रचार के हर फार्मूले भाजपा ही नहीं अन्य पार्टियां भी अपनाना चाहती हैं। वे यह भूल जाती हैं कि ऐसे हथकंडे अपनाने से देशभर में घृणा और तनाव का माहौल बनता है। यही नहीं सामान्य मासूम लोगों की जान जाती है। विचारधारा और विकास के मुद्दों पर विफलता का यह विकल्प नहीं हो सकता है। सुश्री मायावती को पिछले चुनाव में सफलता भले ही नहीं मिली हो, लेकिन वह चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और समाज के एक वर्ग में उनकी लोकप्रियता है। इसी तरह कांग्रेस, अकाली दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यू) के अपने-अपने समर्थक और लोकप्रियता वाले क्षेत्र हैं। पार्टियों का नेतृत्व यह सुनिश्चित कर सकता है कि राजनीतिक विरोध की लक्ष्मण रेखा क्या हो? यदि नेतृत्व बंद कमरे में राजनीतिक विरोधियों को पहले अपशब्दों से बुरी तरह विचलित और उत्तेजित करने और चुनाव से पहले विभिन्न क्षेत्रों में वर्चस्व के लिए खून-खराबे के लिए सहयोगियों और कार्यकर्ताओं को उकसा देंगे, तो फिर स्थिति को नियंत्रित कौन करेगा? आजादी के बाद नेहरू-इंदिरा से लेकर वाजपेयी-आडवाणी या नंबुदरीपाद तक के कट‍्टर विरोधी नेता और उनकी पार्टियों के लाखों कार्यकर्ता-समर्थक होते थे, लेकिन वे राजनीतिक लड़ाई को व्यक्तिगत दुश्मनी के रूप में नहीं बदलने देते थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि हाल में शुरू हुआ दलित उत्पीड़न का मुद्दा समय रहते विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कठोर कार्रवाई के जरिये नियंत्रित किया जाएगा।

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