बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान में किस नए राज्य में शामिल हुआ जाए, इसे लेकर जम्मू-कश्मीर रियासत के तत्कालीन राजा हरि सिंह काफी पशोपेश में थे। एक तरफ पाकिस्तान से कबालियों का हमला हो रहा था और दूसरी तरफ वह आजाद भी रहना चाहते थे।
महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। बंटवारे और आज़ादी के बाद सांप्रदायिक तनाव की वजह से उनके लिए अपने राज्य को स्पष्ट रूप से मुस्लिम राज्य का हिस्सा बनाना मुश्किल था।
उस समय की प्रमुख राजनीतिक हस्ती शेख़ अब्दुल्ला ने भी भारत में विलय का समर्थन किया था, हालांकि बाद में उनका झुकाव आज़ादी की ओर हो गया था। ऐसे में महाराजा हरि सिंह 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर रियासत के भारत में विलय को लेकर तैयार हो गए थे। इसके लिए उन्होंने इसी तारीख भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को पत्र लिखा था। इस पत्र में उनकी दुविधा साफ नजर आती है कि किस तरह वो पाकिस्तान की तरफ से हो रहे हमलों से परेशान हैं और उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है।
पत्र की भाषा से महाराजा हरि सिंह काफी जल्दबाजी में भी लग रहे थे।
यहां पढ़िए, उस पत्र का हिंदी अनुवाद-
तारीख- 26 अक्टूबर, 1947
मेरे प्रिय लॉर्ड माउंटबेटन,
मैं मान्यवर से यह निवेदन करता हूं कि मेरे राज्य में एक गंभीर संकट खड़ा हो गया है और मैं आपकी सरकार से तत्काल सहायता के लिए प्रार्थना करता हूं। मान्यवर जानते ही हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य अब तक भारत या पाकिस्तान में से किसी उपनिवेश के साथ जुड़ा नहीं है।
भौगोलिक दृष्टि से मेरा राज्य इन दोनों के साथ जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, मेरे राज्य की सोवियत संघ तथा चीन के साथ समान सीमा है। भारत और पाकिस्तान अपने बाह्य संबंधों में इस सत्य की उपेक्षा नहीं कर सकते।
यह निर्णय लेने के लिए मैं समय लेना चाहता हूं कि किस उपनिवेश के साथ जुड़ूं अथवा क्या यह दोनों उपनिवेशों तथा मेरे राज्य के हित में नहीं होगा या मैं स्वतंत्र रहूं और बेशक, दोनों उपनिवेशों से तथा मेरे मैत्रीपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण संबंध रहें। इसके अनुसार मैंने भारत और पाकिस्तान से विनती की कि वे मेरे राज्य के साथ यथावत स्थिति का करार कर लें।
पाकिस्तान सरकार ने इस व्यवस्था को स्वीकार किया। भारत ने मेरी सरकार के प्रतिनिधियों के साथ इस प्रश्न पर अधिक चर्चा करनी चाही। नीचे बताई गई घटनाओं की वजह से मैं इसकी व्यवस्था नहीं कर सका। सच पूछा जाए तो पाकिस्तान सरकार यथावत स्थिति करार के मातहत राज्य के भीतर डाक-तार व्यवस्था का संचालन कर रही है। यद्यपि पाकिस्तान सरकार के साथ हमने यथावत स्थिति करार किया है, फिर भी उस सरकार ने मेरे राज्य में पाकिस्तान होकर आने वाले अनाज नमक तथा पेट्रोल जैसी वस्तुओं को अधिकाधिक मात्रा में रोकने की इजाजत अपने अधिकारियों को दी है।
अफरीदियों को, सादी पोशाक में सैनिकों को और आतताइयों को आधुनिक शस्त्रों के साथ राज्य के भीतर घुसने दिया गया है- सर्वप्रथम पुंछ क्षेत्र में। नतीजा यह हुआ कि राज्य के पास मर्यादित संख्या में जो सेना थी उसे अनेक मोर्चों पर बिखेर देना पड़ा है। और उसे अनेक स्थानों पर साथ-साथ शत्रुओं का सामना करना पड़ा है। इससे जानमाल की भयंकर बरबादी को रोकना कठिन हो गया है।
महूरा पावर-हाउस की लूट को नहीं रोका जा सका, जो समस्त श्रीनगर को बिजली मुहैया करता है और जिसे जला दिया गया है। भारी संख्या में किया गया स्त्रियों का अपहरण और उन पर किया गया बलात्कार मेरे हृदय को चूर-चूर किए दे रहा है। इस प्रकार जिन जंगली शक्तियों को पाकिस्तान ने मेरे राज्य में घुसने दिया है, वे पहले कदम के रूप में मेरी सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर पर अधिकार करने और फिर सारे राज्य को रौंद देने और तहस-नहस कर डालने का लक्ष्य सामने रखकर आगें बढ़ रही है। उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के दूर के क्षेत्रों से आये हुए कबालियों की जो नियमित मोटर, ट्रकों से आ रहे हैं, मशनेरा-मुजफ्फराबाद मार्ग का उपयोग कर रहे हैं और अधतन शस्त्रों से सज्ज होते हैं- सामूहिक घुसपैठ सीमाप्रांत की प्रांतीय सरकार तथा पाकिस्तान सरकार की जानकारी के बिना संभव नहीं हो सकती।
मेरी सरकार ने इन दोनों सरकारों से बार-बार अपील की है, परंतु इन आक्रमणकारियों को रोकने का या मेरे राज्य में न आने देने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया है। सच पूछा जाए तो पाकिस्तानी रेडियो और अखबारों में घटनाओं के समाचार दिए गए है। पाकिस्तान रेडियों ने तो यह बात जाहिर की है कि कश्मीर में अस्थायी सरकार स्थापित कर है। मेरे राज्य की जनता ने, मसलमानों और हिन्दुओं दोनों ने, सामान्यतः इस गड़बड़ी में कोई हिस्सा नहीं लिया है।
मेरे राज्य की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए और आज के घोर संकट को देखते हुए मेरे पास भारतीय उपनिवेश से सहायता मांगने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं रह गया है। स्वाभाविक रूप में ही जब तक मेरा राज्य भारतीय उपनिवेश के साथ जुड़े नहीं तब तक वह मेरी मांगी हुई सहायता नहीं भेज सकता। इसलिए मैंने भारत के साथ जुड़ने का निर्णय किया है और मैं इस पत्र के साथ आपकी सरकार की स्वीकृति के लिए सम्मिलन (एक्सेसन) का एक दस्तावेज भेज रहा हूं। दूसरा विकल्प है मेरे राज्य और मेरी प्रजा को लुटेरों और हत्यारों के हाथ छोड़ देना। इस आधार पर कोई सभ्य सरकार टिक नहीं सकती या काम नहीं कर सकती। जब तक मैं इस राज्य का शासक हूं और मुझमें इस राज्य की रक्षा करने की शक्ति है तब तक मैं यह विकल्प कभी स्वीकार नहीं कर सकता।
मैं मान्यवर की सरकार को यह बता दूं कि मेरा इरादा तुरंत अंतरिम सरकार स्थापित करने का तथा संकट में मेरे प्रधानमंत्री के साथ शासन की जिम्मेदारियां संभालने की बात शेख अबदुल्ला से कहने का है। मेरे राज्य को यदि बचाना है, तो उसे श्रीनगर में तत्काल भारत की मदद मिलनी चाहिए। श्री वीपी मेनन परिस्थिति की गंभीरता को पूरी तरह जानते हैं,और यदि इस संबंध में अधिक स्पष्टीकरण जरूरी हो, तो वे आपको यहां की स्थिति समझा देंगे।
द पैलेस सादर
26 अक्टूबर, 1947 हरि सिंह
(अंग्रेजी में लिखा पत्र- http://www.jammu-kashmir.com/documents/harisingh47.html से साभार)