आधार से होने वाले फायदे को लेकर लगातार विवाद बढ़ता ही जा रहा है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि आधार के जरिए डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम के जरिए केंद्र सरकार ने 15,000 करोड़ रुपये की बचत की है। जबकि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ससटेनब्ल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) के शोध में यह सामने आया है कि आधार के इस्तेमाल से आंकड़ों और डूपलिकेशन हटाने से वर्ष 2014-15 में केवल 12-13 करोड़ रुपये बचाने में मदद मिली थी और वर्ष 2015-16 में यह बढ़कर 120.90 करोड़ रुपये हुई।
यह फायदा या फायदे का दावा एलपीजी गैस सिलेंडर से संबंधित है। दिलचस्प बात यह है कि आधार के जनक नंदन नीलेकणी ने यह दावा किया था कि महज एक साल में एलपीजी सब्सिडी से 10 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई है। इस बारे में आउटलुक को आधआर मामले की विशेषज्ञ और उसके खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही ज्यूरिस्ट उषा रमानाथन ने बताया कि इस तरह से जो आंकड़ों और बचत को लेकर सरकार दावे कर रही है, वह भ्रामक है। आधार को आधार मुहैया कराने के लिए यह सारी सरकारी कोशिशें खतरनाक है। कम से कम संसद में सरकार को सच रखना चाहिए। यह प्रोजेक्ट तथ्यों पर आधारित नहीं है। जो आशंकाएं जताई जा रही थी, वही सही साबित हो रही है। इससे उन्हें कोई फर्क पड़ता कि लोगों को इससे क्या तकलीफ हो रही है। इसे अभी तुरंत रोकने की जरूरत है।
आईआईएसडी के शोधकर्ता के. क्लार्क का कहना है कि सरकार ने आधार से हुई बचत की गणना ठीक से नहीं की। उनका कहना है कि सब्सिडी लेने वालों के नाम होने वाले दोहरावों या गड़बड़ियों को ठीक करने का काम ऑयल मार्केटिंग कंपनियां कर रही थीं। इसने बहुत मदद की। हालांकि आधार से जुड़े लोगों का कहना है कि इस तरह से अलग-अलग मद में इस लाभ को बांटना संभव नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इतनी चोरी आधार की वजह से नहीं रुकी है।
इन तमाम दावों के बीज गांव-देहात में सब्सिडी को आधार से जोड़ने की वजह से ग्रामीणों को हो रही दिक्कतों की दास्तानें भी सामने आ रही है। राजस्थान में अरुणा राय और निखिल डे द्वारा जुटाए गए आंकड़ों से साफ होता है कि 20 से 40 फीसदी आबादी ही आधार के जरिए अपनी बुनियादी सुविधाओं को उठा पा रही है।