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रेल और विमान में सड़ा खाना

एयर इंडिया का प्रतीक गौरवशाली ‘महाराजा’ रहा है। तकनीकी रूप से इसका स्वायत्तशासी प्रबंध मंडल है। लेकिन असली वित्तीय और प्रशासनिक कमान भारत सरकार के पास है। इंडियन एयरलाइंस को भी एयर इंडिया में समाहित कर दिए जाने के बाद राष्ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय उड़ानों का बड़ा दायित्व भारतीय विमान सेवा पर है। लेकिन सारे आधुनिकीकरण और विस्तार के बावजूद महान भारत की इस विमान सेवा में सड़ा, बासी, अधपका खाना परोसे जाने की शिकायतें वर्षों से होती रही हैं।
रेल और विमान में सड़ा खाना

इस बार राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने मुंबई से न्यूयार्क जा रहे एयर इंडिया के विमान में बासी खाना परोसने पर एक यात्री की शिकायत पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। दुःखद बात यह है कि पहले महाराष्ट्र के प्रादेशिक उपभोक्ता आयोग ने इस शिकायत को सही मानकर जुर्माना लगाया, लेकिन एयरलाइंस ने इसका विरोध करते हुए पुनर्विचार की अपील डाल दी। राष्ट्रीय आयोग ने अपील ठुकराकर जुर्माना देने का आदेश दिया। साल भर की दौड़भाग-अपील आदि के बाद एक यात्री को जुर्माना मिलेगा। लेकिन विमान में अन्य दो-तीन सौ यात्रियों के दुःख को कौन सुनेगा? फिर यह एक दिन की बात नहीं है।

वर्षों से एयर इंडिया की खान-पान सेवा के ठेकों में गड़बड़ियां होती रही हैं। टेंडर के चक्कर में न्यूनतम दर के आधार पर ठेके दिए जाते रहे हैं। एअर इंडिया के विमानों का बेड़ा बहुत बड़ा है। प्रतिदिन सैकड़ों उड़ाने होती हैं। विमान का रख-रखाव भी धीरे-धीरे खराब हो गया है। इससे विमान सेवा में विलंब होता है। यात्रियों को विमान में सवार होते ही पानी का ग्लास देने तक की व्यवस्‍था खत्म हो गई है। दो दशक पहले तो विमान में बैठते ही कोई जूस या पानी दिया जाता था। अब लंबी उड़ान में नाश्ता, भोजन इत्यादि सड़क पर लगने वाले ढाबों से भी बदतर होता है। हां, अति विशिष्ट विमान सेवा यानी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए चलाए जाने वाले विमानों में यथासंभव गर्म भोजन परोसने की कोशिश होती है। यूं दो दशक में उसके स्तर में भी गिरावट आ गई है। कांग्रेस या भाजपा शासन में यात्रियों की न्यूनतम सुविधाओं की शिकायतों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। खानापूर्ति होती रही है।

भारतीय रेल की स्थिति तो और भी बदतर है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पिछले डेढ-दो वर्षों में ‘डिजिटल’ क्रांति से बड़े बदलाव किए, लेकिन लंबी दूरी वाली अधिकांश रेलगाड़ियों में अब तक उचित मूल्य पर भोजन की थाली नहीं दिलवा पाए हैं। मीडिया, सांसद, पार्टी के नेताओं ने भी शिकायतें पहुंचाई हैं। अब उपभोक्ता आयोग अथवा अदालत नाराजगी के साथ जुर्माना कर सकती है, खाना तो नहीं पहुंचा सकती।

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