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शीर्ष कोर्ट ने कहा-सिंधु जल समझौता 1960 से चल रहा, दखल ठीक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारत और पाकिस्तान के बीच की सिंधु जल संधि को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने की मांग करने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि दोनों देशों के बीच यह समझौता 1960 से चल रहा है इसलिए इसमें दखल देना ठीक नहीं है।
शीर्ष कोर्ट ने कहा-सिंधु जल समझौता 1960 से चल रहा, दखल ठीक नहीं

सुप्रीम कोर्ट में दायर इस अर्जी में सिंधु जल समझौते की संवैधानिकता को लेकर चुनौती दी गई थी, जिस पर कोर्ट ने दखल देने से इंकार कर दिया है। अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह संधि दो नेताओं के बीच हुई थी जिसके आधार पर इसे रद्द करने की मांग की गई थी।

गौरतलब है कि वर्ष 1960 में पानी के बंटवारे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच यह संधि हुई थी, जिसे तब से  सिंधु जल समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते पर पीएम जवाहर लाल नेहरू और अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।

इस संधि के तहत सतलुज, व्यास, रावी, सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के पानी का बंटवारा किया गया था। सतलुज, व्यास और रावी का ज्यादातर पानी भारत के हिस्से में आता है, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब का ज्यादातर पानी पाकिस्तान के हिस्से में आता है। इस समझौते में यह तय हुआ कि सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी सहायक नदियों में विभाजित किया जाए।

संधि शर्तों के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी भारत बिना किसी प्रतिबंध के इस्तेमाल कर सकता है। जबकि पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के उपभोग के लिए होगा, लेकिन कुछ सीमा तक भारत इन नदियों का जल भी उपयोग कर सकता है। 

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