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नगद नारायण का मुक्ति काल

बड़े अफसर आकाओं ने ऐलान कर दिया है कि सरकार अब भारतीय मुद्रा रुपये के नगदी खर्च पर सेस के रूप में अतिरिक्त कर वसूलने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रही है और जल्द निर्णय हो सकता है। संभव है यह कर दो-चार प्रतिशत ही हो। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया में महान भारत अकेला ऐसा देश होगा, जहां ‘नगद नारायण’ को प्रणाम करने के बजाय यथासंभव दूर रखने में अपना कल्याण समझेंगे।
नगद नारायण का मुक्ति काल

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि किसी राजनीतिक पार्टी से लगाव होने पर उसे ‘नगद दान’ देने पर भी ‘सेस नाग’ का प्रकोप होगा या नहीं? यदि हुआ तो दल या नेता के भक्त जहर का एक घूंट और पी लेंगे। यह बात अलग है कि नेताओं को अपनी पार्टी के खजाने में एक हजार करोड़ या एक लाख करोड़ आ जाने पर एक रुपया भी कोई टैक्स नहीं चुकाना होगा। इस खजाने को नेतागण और उनकी फौज मनचाहा खर्च कर सकेगी। आखिरकार, लोकतंत्र के रक्षक नेता और उनकी पार्टी है। नेता या उसके कार्यकर्ता उम्रदराज होने पर कोई आश्रम खोलकर न्यास इत्यादि बना लें और सेवानिवृत्त अफसर या बुजुर्ग चार्टर्ड अकाउंटेंट को मानसेवी पद प्रदान कर दें, तो बही-खाता ठीक रहता है और टैक्स देने का सवाल ही नहीं है। इसलिए नगद नारायण अब पार्टी या धार्मिक संस्‍थान/न्यास के खजाने में सदा मुस्कराते रह सकते हैं। स्वच्छ भारत की स्वस्‍थ्य अर्थव्यवस्‍था के लिए सरकार ने पटाखे नहीं हर संभव प्रक्षेपास्‍त्र का इंतजाम किया है। इससे झोपड़ी और महल तक प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन अब महल कम हो गए हैं। आकाश और जलमार्ग के अत्याधुनिक विमान रखने वालों के बहुमंजिले भवन भारत से अधिक विदेशों में हैं। भारत इस बात का गौरव कर सकता है कि उसके उद्यमी ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया, रूस, जर्मनी और जापान जैसे देशों में भी अरबों डॉलर या अन्य विदेशी मुद्रा में लगा चुके और लगाते रहेंगे। संपन्न भारतीय अब घर से बाहर ‘नगद नारायण’ का जयघोष कर सकते हैं। सामान्यजन संतोषी, धैर्यवान, ईदानदारी से आंख मूंदकर सुंदर भविष्य की कामना करता रहेगा।

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