थोड़ी देरी से इलाज शुरू होने पर लोगों की मौत तक हो रही है। इसी साल सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार डेंगू के करीब 28 हजार मामलों में से 60 लोगों की मृत्यु हो गई। मलेरिया से तो 119 लोग जुलाई, 2016 तक मर चुके थे। छोटे कस्बों और गांवों में हो रहे प्रभाव का रिकॉर्ड ही नहीं मिल पाता है। डीडीटी के छिड़काव का जमाना लद गया। स्वच्छ भारत अभियान में स्थानीय नगर-निगमों-पालिकाओं, पंचायतों के पर्याप्त सक्रिय न होने से मच्छरों की संख्या और रोगी बढ़ते जा रहे हैं। छोटे कस्बों-गांवों की कठिनाइयां समझी जा सकती हैं, लेकिन दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों के सरकारी और आधुनिकतम पांच सितारा प्राइवेट अस्पतालों में डेंगू के रोगियों के आपात इलाज के लिए बेड नहीं मिल रहे हैं। यह कोई राजनीतिक मुद्दा भी नहीं है। दिल्ली, म.प्र., छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल या असम में किसी की भी सरकार हो, मच्छरों और उससे फैलने वाले बुखार-हड्डी तोड़-जानलेवा रोग पर काबू पाने के लिए समय रहते व्यापक अभियान क्यों नहीं चलाया जाता। आधुनिक हथियारों की खरीदी में दलाली रोकने से हुए मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा भारत को मच्छर रोग मुक्त पर क्यों नहीं खर्च किया जा सकता है? चीन ने तो वैज्ञानिक खोज से अलग ढंग से लाखों मच्छर तैयार कर मच्छरों की जाति ही खत्म करने का अभियान सफल कर लिया। अब वहां मच्छर जनित कोई रोग नहीं फैल पा रहा है। चीन से आर्थिक संबंध बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास हो रहे हैं एवं व्यापार भी बढ़ रहा है। चीन से अन्य मुद्दों पर विवाद हो सकता है। लेकिन मच्छर मुक्ति और चिकित्सा क्षेत्र में समन्वय पर किसी को आपत्ति नहीं होगी। जी-20 और ब्रिक्स संगठनों के समझौतों का असली लाभ भारतीयों को स्वस्थ बनाने के लिए भी हो सकता है।
‘मच्छर मुक्त’ भारत की कामना
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने श्रीलंका को मलेरिया मुक्त होने का प्रमाण पत्र दे दिया। दक्षिण पूर्व एशिया में मालदीव तो तीस साल पहले से मलेरिया मुक्त हो चुका है। भारत ने विज्ञान-टेक्नोलॉजी के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बड़ी क्रांतिकारी प्रगति की है। फिर भी मच्छरों से फैलने वाले मलेरिया ही नहीं डेंगू, चिकनगुनिया और जापानी इंसेफलाइटिस जैसे बुखार से हर साल लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
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