कन्नड़ लेखिका और 2025 इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक ने लंदन में एक पुस्तक प्रचार कार्यक्रम के दौरान शरण लेने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और स्पष्ट किया कि वह भारत में ही रहना चाहती हैं। हसन की रहने वाली 77 वर्षीय लेखिका ने कर्नाटक यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही।
लंदन में अपनी पुस्तक 'हार्ट लैंप' के प्रचार के दौरान एक महिला ने उनसे पूछा कि क्या वह भारत में "अशांति" के कारण यूनाइटेड किंगडम में शरण लेने की योजना बना रही हैं। इस पर बानू ने साफ और स्पष्ट जवाब दिया, "मैंने कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है, और हम भारत में रहना जारी रखेंगे। यह अशांति की बात किसने बताई?" उन्होंने कहा कि लंदन एक सांस्कृतिक केंद्र है, जहाँ कई लेखक रहकर बेहतरीन साहित्यिक कार्य कर रहे हैं, लेकिन उनकी जड़ें भारत में हैं।
बानू की पुस्तक 'हार्ट लैंप', जो कन्नड़ से अंग्रेजी में दीपा भास्ती द्वारा अनुवादित एक लघु कहानी संग्रह है, ने इस साल का इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीता। यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ रचना और लघु कहानी संग्रह को यह सम्मान मिला है। पुरस्कार समारोह में बानू ने कहा, "यह पुरस्कार कन्नड़ भाषा और साहित्य की सच्ची क्षमता को दर्शाता है।"
उन्होंने अपनी लेखन यात्रा को याद करते हुए कहा कि वह बैलगाड़ी से यात्रा करने से लेकर वैश्विक मंच तक पहुँची हैं। बानू ने जोर देकर कहा कि यह सम्मान व्यक्तिगत नहीं, बल्कि एक टीम वर्क की जीत है। उनकी कहानियाँ, जो 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं, मुख्य रूप से मुस्लिम महिलाओं के संघर्षों और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित हैं।
बानू ने यह भी बताया कि लंदन की यात्रा के दौरान उनका सूटकेस, जिसमें उनकी दवाइयाँ और समारोह के लिए चुनी गई मसूरी सिल्क साड़ी थी, खो गया था। उनकी बेटी, जो बहरीन में रहती है, ने लंदन में उनके लिए एक साड़ी लाई, लेकिन मसूरी सिल्क साड़ी पहनने की उनकी इच्छा अधूरी रह गई।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनकी उपलब्धि की सराहना करते हुए कहा, "यह कन्नड़ साहित्य और हमारी संस्कृति के लिए गर्व का क्षण है।" बानू ने कहा कि वह अपनी लेखन शैली में कोई बदलाव नहीं करेंगी और कन्नड़ साहित्य को वैश्विक मंच पर और अधिक पहचान दिलाने की दिशा में काम करती रहेंगी।