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तबाही के बाद बिहार में चुनौती

बिहार के कोसी इलाके में तूफान की तबाही का मंजर अभी देख ही रहे थे कि अचानक पड़ोसी मुल्क नेपाल में आए भीषण भूकंप से यह पूरा इलाका ही थर्रा गया। सहरसा, पूर्णिया, सुपौल, मधेपुरा, कटिहार, अररिया आदि जिलों में तूफान के कहर के बाद यहां के लोगों को लग रहा था कि जन-जीवन सामान्य हो रहा है
तबाही के बाद बिहार में चुनौती

लेकिन अचानक आए भूकंप ने इन इलाकों में रह रहे लोगों को और दहशत में डाल दिया। नेपाल से सटा इलाका होने के कारण यहां के लोग और उनके परिजन बड़ी संख्या में नेपाल में भी रहते हैं जिसके कारण लोगों के चेहरे पर भी खौफ का माहौल है कि पता नहीं वे लोग सुरक्षित भी हैं या नहीं। भूकंप का असर तो पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, झारखंड, त्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, त्तराखंड, दिल्ली, ओडिसा आदि राज्यों पर भी था लेकिन ज्यादा तबाही बिहार में हुई जहां 86 से ज्यादा मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। लेकिन सरकार ने केवल 51 मौत की पुष्टि की है।

पूर्वी चंपारण में सबसे ज्यादा 11 लोगों की मौत हुई है और सीतामढ़ी में आठ लोगों की जान गई है। मधेपुरा में छह और मुजफ्फरपुर में चार लोगों की मौत हुई है। इसके अलावा राज्य के विभिन्न इलाकों में भी मौत की खबरें सामने आ रही हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी मंत्रियों और विभागों के सचिवों को अपने प्रभार वाले जिलों में राहत एवं बचाव कार्य का निर्देश दिया। वहीं स्वयं पटना की सडक़ों पर पूरी रात व्यवस्था का जायजा लेते रहे, जहां भूकंप की दहशत से लोग गांधी मैदान, कुम्हरार पार्क सहित कई पार्कों में डेरा डाले हुए थे। राजद प्रमुख लालू यादव ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि भूकंप से हुई तबाही को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे, साथ ही, केंद्र सरकार पुनर्निर्माण और पुनर्वास कार्य की पूरी भी ले। वहीं भाजपा नेता सुशील मोदी ने बिहार सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य सरकार भूकंप और तूफान से पीडि़तों के लिए कुछ नहीं कर रही है। माना जा रहा है कि तूफान और भूकंप से हुई तबाही इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में सियासी मुद्दा भी बन सकता है। बिहार के लिए सबड़े बड़ी चुनौती केवल तूफान और भूकंप से हुई तबाही नहीं बल्कि पलायन की है। छोटे किसानों की जो फसलें बर्बाद हुई हैं उसके लिए राज्य सरकार के पास कोई नीति नहीं है। नीतीश कुमार भले ही यह कह रहे हों कि नुकसान का आकलन किया जा रहा है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि किसानों या प्रभावितों के लिए राहत के क्या उपाय किए जा रहे हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े नुकसान से बिहार की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि राज्य के पास आर्थिक समृद्धि के लिए कोई बड़ा संसाधन नहीं है।

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