कोरोना ने लोगों को ऑक्सीजन के महत्व को सांस की कीमत को समझा दिया है। ऑक्सीजन के गिरते स्तर के कारण दम मरीजों का घुट रहा है मगर छटपटा उनके परिजन रहे हैं। दिल्ली के रीफिलिंग सेंटर हों या दूसरे जगह 24-24 घंटे से मरीजों के परिजन संक्रमण के भय के बिना भूख-प्यास भूलकर कतार में खड़े हैं। ताकि किसी अपने की सांस की डोर न टूट जाये। राशन और गैस की लाइन देखने वाले देश ने ऑक्सीजन के लिए इस तरह लाइन पहली बार देखा है। ऐसे में केरल और ओडिशा के साथ झारखण्ड जैसे छोटे से राज्य का बड़ा चेहरा सामने आया है। ये ऑक्सीजन मुहैया करा देश के लोगों की सांस की डोर थामने का काम कर रहे हैं। झारखंड की औद्योगिक राजधानी जमशेदपुर की टाटा स्टील के अनुसार कंपनी रोजाना 300 टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के अस्पतालों को भेज रही है।
टाटा स्टील में सैकड़ों मीट्रिक टन ऑक्सीजन की रोजना खपत है। इसकी आपूर्ति के लिए यहां छह ऑक्सीजन प्लांट हैं। इसके लिंडे इंडिया की उत्पादन क्षमता ही करीब पांच हजार टन है। बोकारो स्टील सिटी से ही तीन टैंकरों में करीब तीस हजार लीटर ऑक्सीजन को यूपी रवाना किया गया, एक वाराणसी तो दो लखनऊ। समय पर गैस पहुंचे इसके लिए रांची जोन में रेलवे ने पहलीबार ग्रीन कोरिडोर बनाकर दूसरी गाड़ियों को रोककर इसे पास किया। मगर यहां भी सिलेंडर की भांति टैंकरों की कमी महसूस की जा रही है। गैस के भराई, डिस्पैच से लेकर आपूर्ति के लिए टैंकरों में जीपीएस सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है।
हेल्थ सेक्टर में अच्छा चेहरा रखने वाले केरल की स्थिति ऑक्सीजन के मामले में भी बेहतर है। केरल से कर्नाटन, गोवा और तमिलनाडु को ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। दरअसल संकट को भांपते हुए केरल सरकार ने पहले ही ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने का आदेश दे दिया था। ओडिशा ने भी यूपी, एमपी, आंध्र, तेलंगाना, दिल्ली, महाराष्ट्र को ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रहा है। बीते दो-तीन दिनों में ही ओडिशा ने 500 मीट्रिक टन से अधिक ऑक्सीजन इन राज्यों को भेजा है। वैसे देश में क्रमश: महाराष्ट्र, गुजरात, झारखण्ड, ओडिशा और केरल सर्वाधिक ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले राज्यों में हैं जिनसे उम्मीदें हैं। इन राज्यों में ऑक्सीजन उत्पादन के कोई डेढ़ दर्जन बड़े प्लांट हैं।
रिलायंस इंडस्ट्रीज, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, इफको ( भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लि.), जिंदल स्टील एंड पावर लि. स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया, आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया ने भी ऑक्सीजन आपूर्ति में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
देश में कोरोना से हालत बिगडी तो सुपीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। भारत सरकार से कोरोना और ऑक्सीजन पर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय योजना मांगी। कहा चोरी कर के या जहां से लायें, ऑक्सीजन की आपूर्ति करें। तब देश में सरकारी स्तर पर अफरातफरी मची। रेल, रोड और आकाश मार्ग से इसकी आपूर्ति शुरू हुई। जब टैंकरों को सीमा पर रोकने की खबरें आने लगीं तो दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि केंद्र, राज्य या स्थानीय प्रशासन कोई अधिकारी ऑक्सीजन आपूर्ति में बाधा बनता है तो उस व्यक्ति को लटका देंगे। इधर तापमान नियंत्रित रखने वाले चार क्रायोजेनिक टैंकर विमान से सिंगापुर से मंगाये जा रहे हैं ताकि अस्पतालों तक सुरक्षित ऑक्सीजन पहुंच सके।
दरअसल देश में जितना ऑक्सीजन का उत्पादन होता है उसका 15 प्रतिशत ही अस्पताल इस्तेमाल करते हैं शेष उद्योगों के काम आता है। मगर कोरोना संक्रमण के दौर में स्थिति उलट गई है। 85-90 प्रतिशत ऑक्सीजन का रुख अस्पतालों की ओर है। मगर समन्वय का अभाव है, ऑक्सीजन तो है मगर सिलेंडर का अभाव हो गया है। आशंका से ग्रसित लोग एक बार सिलेंडर मिल जाने पर आपात स्थिति के लिए रिजर्व में रख ले रहे हैं। रोटेशन नहीं होने से संकट है। बीते दिनों हालत यह हुई कि हैदराबाद में ऑक्सीजन प्लांट के बाहर की भीड़ को कंट्रोल करने के लिए बाउंसर को बुलाना पड़ा।