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मध्य प्रदेश: नक्सलियों की दस्तक

“कान्हा टाइगर रिजर्व में वनकर्मियों की हत्या से सरकार पर्यटन पर संकट के अंदेशे से हरकत में...
मध्य प्रदेश: नक्सलियों की दस्तक

“कान्हा टाइगर रिजर्व में वनकर्मियों की हत्या से सरकार पर्यटन पर संकट के अंदेशे से हरकत में आई”

कान्हा टाइगर रिजर्व के तहत पिछले महीने की 22 तारीख को बालाघाट के एक गांव में वन विभाग के एक चौकीदार की मौत से सनसनी फैल गई। पुलिस ने पाया कि यह काम नक्सलियों का है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को लिखा कि कान्हा टाइगर रिजर्व में नक्सली गतिविधियां बढ़ रही हैं। केंद्रीय मंत्री के इस पत्र के बाद राज्य सरकार तुरंत हरकत में आ गई। तत्काल उच्चस्तरीय बैठक की गई और सभी आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए गए।

मध्य प्रदेश का यह टाइगर रिजर्व दुनिया भर में प्रसिद्ध है। बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं। अब राज्य सरकार को यह डर सताने लगा है कि कहीं नक्सलियों की बढ़ती गतिविधियों की वजह से पर्यटक यहां आने से कतराने न लगें।  यहां के जंगल में नक्सलियों की मौजूदगी तो है लेकिन पर्यटन पर इसका असर नहीं हुआ है। लंबे समय से कोर और बफर जोन में नक्सलियों के विस्तार दलम और खटिया मोचा दलम की मौजूदगी बताई जाती है। नक्सलियों ने अपनी संख्या बढ़ाकर पिछले दिनों वनकर्मियों को धमकाने, मारने और उनसे राशन छीनने जैसी वारदात को अंजाम दिया। बालाघाट जिले में नक्सलियों ने पिछले चार माह में तीन लोगों को मुखबिरी के शक में मार डाला है। मालखेड़ी के जंगल में जगदीश पटले और संतोष यादव और पिछले माह वन श्रमिक सुखदेव सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इन घटनाओं ने मंडला सहित बालाघाट परिक्षेत्र में नक्सलियों की मौजूदगी को बल दिया है।

इन घटनाओं का रिजर्व के पर्यटन पर असर के बारे में मध्य प्रदेश वन विभाग के प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल का कहना है कि बालाघाट और मंडला में नक्सलियों का प्रभाव लंबे समय से चला आ रहा है किन्तु इसका कोई असर टाइगर रिजर्व के पर्यटन में नहीं हुआ है। इस तरह के कोई संकेत भी नहीं दिखाई दे रहे हैं। जहां तक नक्सलियों पर कार्रवाई की बात है तो वह लगातार जारी है। साथ ही जो भी अतिरिक्त कदम उठाने की आवश्यकता है वह पुलिस उठा रही है।   

स्थानीय पुलिस मानती है कि बालाघाट और मंडला स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व लंबे समय से नक्सलियों के लिए पनाहगार रहा है। उनके मूवमेंट को रोकने पुलिस टीम, हॉक फोर्स, सीआरपीएफ द्वारा लगातार ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। कान्हा टाइगर रिजर्व में खाटिया मोचा दलम, प्लाटून-2 और प्लाटून-3 दलम विशेष रूप से सक्रिय हैं। कान्हा बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला है। घने जंगलों के कारण उनके लिए यहां अपनी गतिविधियों को अंजाम देना आसान होता है। पुलिस द्वारा कान्हा क्षेत्र में गश्ती बढ़ाने के साथ अंतरराज्यीय स्तर पर सामंजस्य स्थापित करते हुए नक्सली घटनाओं को रोकने प्रयास किए जा रहे हैं। पिछले कुछ समय में कान्हा क्षेत्र में हॉकफोर्स व सीआरपीएफ जवानों की संख्या बढ़ाई गई है तथा समय-समय पर ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं।   

सतपुड़ा के जंगल में मंडला और बालाघाट जिले की सीमा में 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कान्हा नेशनल पार्क में 100 से ज्यादा बाघ मौजूद हैं, जिनमें 50 के करीब नर और इतनी ही मादा हैं। यहां बाघों का दीदार आसानी से हो जाता है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता और वास्तुकला के लिए विख्यात कान्हा पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है, यही वजह है कि हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं।  कान्हा पार्क में करीब 1.75 लाख पर्यटक हर साल आते हैं, जिसमें से तीस हजार विदेशी पर्यटक होते हैं।  जनवरी से मार्च तक 58000 पर्यटक कान्हा आ चुके हैं।  इन स्थितियों को देखते हुए राज्य सरकार की चिंता का विषय है कि नक्सलियों की वजह से पर्यटन में कोई रुकावट न आ जाए। हालांकि जानकारों का मानना है कि नक्सलियों की बालाघाट और मंडला में उपस्थिति बहुत पहले से बनी हुई है किन्तु वे कभी पर्यटकों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पेंच टाइगर रिजर्व के निदेशक और भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी तथा बालाघाट में लंबे समय तक काम कर चुके आर.जी.सोनी का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में नक्सलियों ने जो हत्याएं की हैं उनका कारण व्यक्तिगत रहा होगा। पिछले तीन दशक से वहां नक्सलियों की उपस्थिति रही है। इसके बावजूद कान्हा टाइगर रिजर्व में पर्यटकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इससे स्पष्ट है कि नक्सली कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करते हैं, जिससे पर्यटन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो।

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