इस पत्र ने मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार और राज्यपाल को एक दिलचस्प स्थिति में ला खड़ा किया है क्योंकि नयी सरकार वोहरा के कार्यकाल के दौरान किए गए कुछ फैसलों का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है जबकि समझा जाता है कि राज्यपाल को गृह विभाग द्वारा उठाए गए कदम की जानकारी नहीं है।
यह हैरत की बात है कि राज्य के गृह विभाग में अतिरिक्त सचिव सुदर्शन कुमार ने कल केंद्रीय गृह मंत्रालय को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें उनके द्वारा चार फरवरी 2015 को लिखे गए उक्त पत्र का कोई जिक्र नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है, लोक सुरक्षा अधिनियम के तहत मसरत के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए कोई नया आधार नहीं है।
अचानक कल रात सामने आए इस पत्र में तारीख पर स्पष्ट रूप से दोहरी लिखावट है जिसे जम्मू के डीएम अजीत साहू ने सात मार्च 2015 को प्राप्त किया था, जिन्होंने पुलिस अधीक्षक (जम्मू) को आलम को रिहा करने की सूचना देते हुए कहा यदि अब तक नहीं छोड़ा गया है तो छोड़ दिया जाए और इसी के अनुरूप जम्मू कश्मीर गृह विभाग के प्रधान सचिव को की गई कार्रवाई की जानकारी दी जाए।
राज्य विभाग ने चार फरवरी के पत्र में आलम के पीएसए के बारे में नौ दिसंबर 2014 के एक पत्राचार का हवाला दिया है जिसे कानून एवं न्याय विभाग को भेजा गया था, जिसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय इस बात को लेकर स्पष्ट है कि सरकार द्वारा हिरासत के लिए जारी किया गया कोई नया आदेश जारी होने के समय से एक हफ्ते तक लागू नहीं होगा ताकि हिरासत में मौजूद व्यक्ति राहत के लिए कोई उपयुक्त कानूनी कदम उठा सके।
हालांकि, गृह विभाग ने कहा कि अधिनियम में मौजूद प्रक्रियाओं और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन करने के बाद आलम के खिलाफ हिरासत का नया आदेश जारी किया जा सकता है।
गौरतलब है कि आलम की रिहाई ने राज्य में राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया है। खासतौर पर सईद द्वारा सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का आदेश दिए जाने के बाद। वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सईद के इस कदम को नामंजूर कर दिया है।