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मेरे पति पागल थे जो जहर खाएंगे, वैक्सीन ट्रायल डोज लेने के बाद हुई थी मजदूर की मौत

भोपाल में कोवैक्सीन के ट्रायल में वैक्सीन लगवाने वाले दीपक मरावी की मौत के मामले में नया मोड़ आ गया है।...
मेरे पति पागल थे जो जहर खाएंगे, वैक्सीन ट्रायल डोज लेने के बाद हुई थी मजदूर की मौत

भोपाल में कोवैक्सीन के ट्रायल में वैक्सीन लगवाने वाले दीपक मरावी की मौत के मामले में नया मोड़ आ गया है। मरावी की पत्नी वैयजंती ने पोस्ट मार्टम रिपोर्ट को गलत बताते हुए कहती हैं कि उसमें जहर वाली बात पूरी तरह गलत है। वैक्सीन लगवाने के अलगे दिन से ही उनकी तबियत बिगडने लगी थी। दीपक 12 दिसंबर को कोवैक्सीन के ट्रायल में शामिल हुए थे, 21 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।

वैजयंती कहती है कि वे पागल थे क्या कि जहर खाएंगे। जहर खाते तो हमें पता नहीं चलता क्या। अगर मौत वैक्सीन से नहीं हुई तो वो इंजेक्शन लगवाने के बाद से ही बीमार कैसे पड़ गए। उन्होंने चलना फिरना क्यों छोड़ दिया। उल्टियां क्यों करने लगे, उनके मुहं से झाग क्यों निकलने लगा।

वैजयंती सवाल उठाती हैं कि अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सही है तो इसे देने में इतनी देर क्यों की गई। हमें 12 दिन तक यहां-वहां क्यों दौड़ाते रहे। देखो जी, हम गरीब हैं, अनपढ़ हैं। जिसके पास पावर और पैसा है वो कुछ भी लिख सकता है रिपोर्ट में। हम कैसे मानें। भगवान भी उतर कर आएं तो भी मैं जहर खाने की बात नहीं मानूंगी। एक फोटो दिखाते हुए वो कहती हैं, 'ये तस्वीर देखिए। एक महीना पहले की ही है। कहीं से लगता है क्या कि इन्हें कोई दिक्कत थी। बाहर किसी से भी पूछ लीजिए। वो तो कभी बीमार पड़ते ही नहीं थे। और हम खुशी से जी रहे थे। भला टेंशन क्या होगी।

वैजयंती के मुताबिक, वैक्सीन लगवाने के अगले दिन से ही उनकी तबीयत खराब रहने लगी। दो तीन दिन बाद उन्होंने खाना-पीना कम कर दिया। कमजोरी भी रहने लगी। वो काम पर भी नहीं जाते थे। अगले दिन उल्टियां भी होने लगी। हमने कहा कि दवा ले लो, डॉक्टर से दिखा लो। लेकिन वो माने ही नहीं, हमें ही डांटने लगते थे। 20 दिसंबर को तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, खाना भी छोड़ दिया। मुहं से झाग भी निकलने लगा। और 21 की दोपहर वो हमें छोड़कर चले गए। परिवार ने कर्ज लेकर पति का क्रिया-कर्म किया है। लॉकडाउन के टाइम से ही किराया बाकी है। समझ नहीं आ रहा कैसे सब चुकाऊंगी।

अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि 12 दिसंबर को प्रोटोकाल के साथ उन्हें पहली डोज दी गई थी। 7 दिन तक उनके हेल्थ की जानकारी ली जाती रही, जिसमें उन्होंने तकलीफ नहीं बताई थी। हालांकि, परिवार का साफ कहना है कि उनके पास न तो कोई फोन आया और न ही कोई हाल जानने घर आया। दीपक के बेटे सूरज तो यहां तक कहते हैं कि 8 जनवरी को दूसरी डोज लगाने के लिए अस्पताल वालों ने कॉल किया था।

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