जम्मू कश्मीर के गृह विभाग ने विभिन्न जेलों में बंद 26 लोगों से जनसुरक्षा कानून (पीएसए) हटा दिया है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। इसे क्षेत्र में स्थिति को आसान करने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा खत्म करने के बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। इसके बाद इन लोगों को पकड़ा गया था और इनके खिलाफ पीएसए लगाया गया था। इसके साथ ही सरकार ने एहतियातन राज्य में तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी थीं। इसमें इंटरनेट और धारा 144 को लागू करना भी शामिल था। कई संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू भी लगाया गया तो स्कूल-कॉलेज भी बंद कर दिए गए थे।
कोर्ट ने पाबंदी की समीक्षा का दिया आदेश
जम्मू-कश्मीर में इन पाबंदियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं। नवंबर के अंतिम सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, जब तक जरूरी न हो न तो इंटरनेट पर बैन लगाया जाना चाहिए और न ही धारा 144 लगाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, इंटरनेट के बेजा इस्तेमाल और सूचनाएं फैलाने के इंटरनेट के रोल के बीच के फर्क को हमें समझना होगाय़ हमारा दायित्व है कि नागरिकों को सभी सुरक्षा और अधिकार मिले। साथ ही लगी पाबंदियों की अगले 7 दिनों में समीक्षा करने का आदेश भी दिया। कोर्ट ने कहा, हमारा काम था जम्मू-कश्मीर में आजादी और सुरक्षा चिंताओ के बीच संतुलन कायम हम कश्मीर की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
इंटरनेट पर बैन के होने चाहिए वाजिब कारण
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इंटरनेट के जरिये सूचनाओं का आदान-प्रदान आर्टिकल 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में आता है। इस पर बैन लगाने के वाजिब कारण होने चाहिए और इसे लंबे समय तक लागू नहीं किया जा सकता। धारा 144 पर कोर्ट ने कहा, इसे विचारों की विविधता को दबाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, सरकार द्वारा प्रतिबंध से जुड़े आदेश कोर्ट में पेश करने से इंकार करना सही नहीं है।