उच्च न्यायालय ने यह आदेश हरियाणा पिछड़ा वर्ग (सेवाओं और शिक्षण संस्थाओं में दाखिले में आरक्षण) अधिनियम 2016 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। इस कानून को 29 मार्च को राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया था। न्यायाधीश एस एस सरोन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अंतरिम आदेश पारित किया। इस कानून को भिवानी के मुरारी लाल गुप्ता ने चुनौती दी है, जिन्होंने अधिनियम के सी खंड को रद्द करने के लिए आदेश की मांग की थी जो नई बनाई गई पिछड़ा वर्ग (सी) श्रेणी के तहत जाट समुदाय को आरक्षण देता है। अदालत में याचिकाकर्ता ने दलील दी कि नए कानून के तहत जाटों को जो आरक्षण दिया गया है वह न्यायाधीश के सी गुप्ता आयोग की रिपोर्ट के आधार पर है, जिसे उच्चतम न्यायालय पहले ही खारिज कर चुका है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि गुप्ता आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण देना न्यायिक आदेश में संशोधन के समान है जिसका अधिकार विधानसभा को नहीं है। सिर्फ न्यायपालिका ही उस मुद्दे में संशोधन कर सकती है जिसपर पहले आदेश आ चुका है।
याचिका में कहा गया कि 2014 में भी राज्य सरकार जाटों को नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण के लिए जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल करने के लिए ऐसा ही विधेयक लाई थी। जिसपर उच्चतम न्यायालय ने राम सिंह और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में अपनी व्यवस्था में कहा था कि जाट सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक तौर पर पिछड़े हुए नहीं है। नया कानून जाट और पांच अन्य समुदायों को पिछड़ा वर्ग (सी) श्रेणी के तहत आरक्षण देता है। पांच अन्य समुदायों में जाट सिख, मुस्लिम जाट, बिश्नोई, रोर और त्यागी शामिल हैं। इन्हें सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थानों में दाखिले में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। पहले यह याचिका न्यायाधीश महेश ग्रोवर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आई, जिसपर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे पर फैसला पीआईएल पीठ को करना चाहिए।